काबुल। कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन तालिबान ने अब उत्तरी अफ़गानिस्तान के एक इलाके पर कब्जा कर लिया है। कब्जे के बाद ही तालिबान ने नया फरमान भी जारी कर दिया है। इसमें किसी भी महिला के बिना पुरुष के साथ बाज़ार जाने पर बैन लगा दिया गया है। इसके साथ ही पुरुषों के दाढ़ी काटने और स्मोकिंग करने पर भी बैन लगाया गया है। चेतावनी दी है कि अगर किसी ने नियम-कायदों का उल्लंघन किया तो उनके साथ गंभीरता से निपटा जाएगा। इन फरमान के बाद लोगों की मुसीबतें और बढ़ गईं हैं।
जिन शहरों को तालिबान ने घेर रखा है, वो उत्तर के उन प्रांतों में हैं जिनकी सीमाएं अफ़ग़ानिस्तान के मध्य एशिया के पड़ोसी देशों से सटी हैं। तालिबान ने परवान प्रांत में स्थित घोरबंद घाटी पर कब्ज़ा जमा लिया है, जो रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम है। इससे इस प्रांत की राजधानी चरिकार के लिए ख़तरा बढ़ गया है, जो काबुल, घोरबंद और हाल ही में अमेरिकी सेना के ख़ाली किए बगराम हवाई अड्डे से महज 60 किलोमीटर दूर है। कंधार में शोरबक, अर्गेस्तान, माइवांड, ख़ाकरेज़, पंजवाई, मरूफ़, शाह वाली कोट और घोरक ज़िले पर भी तालिबान का कब्ज़ा है।
तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया। उस दौरान महिलाओं को घर के अंदर रहने का आदेश था, जब तक कि कोई पुरुष रिश्तेदार साथ न हो, उन्हें बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी, और व्यभिचार जैसे अपराधों में दोषी पाए जाने वालों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। तालिबान न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 हमले के बाद अमेरिका के निशाने पर आया।
अप्रैल में संघर्ष शुरू होने के बाद अबतक 3600 नागरिकों की मौत हुई है। अफगान मिलिट्री के 1000 जवान और अफसर भी मारे गए हैं। 3 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। वहीं, नॉर्थ अफगानिस्तान से हजारों लोग पलायन कर गए हैं। पिछले 15 दिन में 56,000 से अधिक परिवार अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं, जिनमें से अधिकतर देश के उत्तरी हिस्से से हैं। उत्तरी हिस्से में स्थित मजार-ए-शरीफ में एक चट्टान पर बने एक अस्थायी शिविर में ऐसे करीब 50 मजबूर परिवार रह रहे हैं। वे प्लास्टिक के टेंट में चिलचिलाती गर्मी में रहते हैं, जहां दोपहर में पारा 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस स्थान पर एक भी पेड़ नहीं है और पूरे शिविर के लिए केवल एक शौचालय है।
अफगानिस्तान बेहद रूढ़िवादी है और देश के कुछ ग्रामीण इलाके तालिबान की निगरानी के बिना भी इसी तरह के नियमों का पालन करते हैं। लेकिन तालिबान ने इन रूढ़ियों को और भी कठोरता से लागू करने की कोशिश की है। कई महिलाएं और युवा लड़कियां कढ़ाई, सिलाई और जूता बनाने का काम कर रही थीं। लेकिन तालिबान के आदेश से अब वे सब डरी, सहमी हुई हैं। महिलाओं की अपेक्षाकृत मर्दों को ज्यादा आजादी थी, लेकिन उन्हें दाढ़ी बनाने की मनाही थी। नमाज में शामिल नहीं होने पर लोगों को पीटा जाता था और सबको पारंपरिक पोशाक पहनने को कहा जाता था।