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मुख्यमंत्री को अहसास ही नही है कि अधिकारी नही ले रहे है उन्हें गंभीरता से: अखिलेश

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 22 2020 7:13PM | Updated Date: Oct 22 2020 7:13PM
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लखनऊ। समाजवादी पार्टी(सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री को सत्ता में साढ़े तीन साल पूरा होने के बाद भी यह एहसास नहीं है कि अधिकारी उन्हें गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। 
 
दव ने गुरूवार को यहां जारी बयान में कहा कि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) सरकार की कुनीतियों के चलते उत्तर प्रदेश में किसान घोर संकट में है।  किसान की फसल की खुलेआम लूट हो रही है। मुख्यमंत्री के सत्ता में साढ़े तीन साल पूरा होने के बाद भी उनको यह एहसास नहीं है कि अधिकारी उन्हें गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। किसानों के लिए की गई तमाम घोषणाएं फाइलों में धूल खा रही हैं। सभी किसानों की कर्जमाफी का वायदा पूरा नहीं हुआ। फसल बीमा का लाभ बीमा कम्पनियों के हिस्से में गया है, आय दुगनी होने की सम्भावना दूर-दूर तक नहीं। सस्ते कर्ज और लागत से ड्योढ़े मूल्य की अदायगी का इंतजार करते-करते किसानों की आंखें पथरा गई हैं।
 
     उन्होंने कहा कि जब कृषि अध्यादेशों को अधिनियम बनाया जा रहा था तभी यह आशंका थी कि इससे किसानों का ज्यादा अहित होगा। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित होना पड़ेगा। राज्य में धान खरीद की शुरूआत के साथ किसानों की तबाही के दिन शुरू हो गए हैं। सरकारी दावों के बावजूद कितने धान खरीद केन्द्र खुले हैं या खरीद कर रहे हैं इसकी तो अलग से जांच होनी चाहिए। जब राजधानी लखनऊ के एक क्षेत्र में ही उपजिलाधिकारी और एकाधिक लेखपाल घंटों धान क्रय केन्द्र की तलाश में घूमते रहे तब कहीं एक केन्द्र ढूंढ पाएं। वहां भी खरीद नहीं हो रही थी।
 
       यादव ने कहा कि एक तो किसान को आनलाइन पंजीकरण में ही मुश्किल होती है, दूसरे वहां भी वसूली का खेल शुरू हो गया है। आनलाइन बुकिंग के नाम पर किसान से 50 रूपये से लेकर 100 रूपए तक वसूले जा रहे हैं। धान क्रय केन्द्रों पर किसान अपनी फसल लिए तीन-चार दिन तक पड़ा रहता है। उसके लिए इन केन्द्रों पर आवश्यक सुविधाओं तक की व्यवस्था नहीं है। कभी तौल के लिए मजदूर न होने का बहाना होता है तो कभी डस्टर की कमी का रोना होता है। इसके आगे धान क्रय केन्द्र पर किसानों को धान के मानक अनुकूल न होने का ज्ञान देकर लौटा दिया जाता है।
 
        उन्होंने कहा कि धान क्रय केन्द्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1888 रूपए प्रति कुंतल अदा करना होता है। यहां केन्द्र प्रभारियों और बिचैलियों की साठगांठ की साजिशें शुरू होती है। क्रय केन्द्रों पर खरीद न होने से परेशान किसान को अपनी फसल एक हजार या 1100 रूपए प्रति कुंतल बेचने को मजबूर है। धान खरीद में अनियमितता और लापरवाही के ये मामले कोई इसी वर्ष के नहीं है, यही कहानी साढ़े तीन साल से दुहराई जा रही है। मुख्यमंत्री को अधिकारी अनुसुना कर देते हैं।
 
       यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री अपराधियों को जेल भेजने की बात न जाने कितनी बार दुहरा चुके हैं लेकिन हकीकत में मर्ज बढ़ता गया ज्यों-त्यों दवा की। जब किसान लुट चुका होगा तब भाजपा सरकार लुटेरों को चिह्नित करेगी, यह तो अजीब खेल है। भाजपा सरकार में ऊपर से नीचे तक घोटालों और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। किसान भी अच्छी तरह समझने लगे हैं कि उनकी लूट इस अंधेरराज में होगी ही। भाजपा है तो किसानों की दुर्दशा मुमकिन है।
 
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