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पीएफए ने मोदी से बाघों की कड़ी सुरक्षा की मांग की

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 23 2020 2:28PM | Updated Date: Feb 23 2020 2:28PM
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भीलवाड़ा। टाईगर प्रोजेक्ट के चेयरमैन एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण संस्था पीपुल फॉर एनीमल्स की राजस्थान इकाई ने बाघों की कड़ी सुरक्षा करने तथा अनदेखी एवं लापरवाही के चलते हो रही शिकार की घटनाओं पर लगाम लगाने की मांग की है। पीएफए के प्रदेश प्रभारी बाबू लाल जाजू ने मोदी को पत्र लिखकर आज यह मांग की है। जाजू ने देश में पिछले चार वर्ष में चार सौ से अधिक बाघों का शिकार एवं मौत को चिंताजनक बताते हुए देश में टाईगर रिजर्व की संख्या बढ़ाने, इनकी  सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने एवं टाईगर प्रोजेक्टों में बसे गांवों को  अन्यत्र सुव्यवस्थित विस्थापित करने की मांग की। 

उन्होंने बताया कि पहले  देश में टाईगर रिजर्व क्षेत्रों में 64951 परिवार निवासरत थे जिसमें से  कुछ परिवारों को ही विस्थापित किया गया है। टाईगर प्रोजेक्टों में बस्तियों  के चलते शिकार की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के द्वारा हाल में अहमदाबाद में एक कांफ्रेंस में बाघों एवं गोडावण पक्षी को लेकर चिंता जाहिर की जो इनके संरक्षण की दिशा प्रशंसनीय है। उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों में 414 बाघों की मौत हो चुकी है इनमें गत वर्ष में 84, वर्ष 2018 में 93, 2017 में 115 एवं 2016 में 122 बाघों की मौत एवं शिकार के मामले सामने आये। उन्होंने देश में टाईगर प्रोजेक्टों में शिकार एवं मौत से घट रही बाघों की संख्या को चिंताजनक बताते हुए कहा कि सरकार के आंकड़ों में 50 टाईगर रिजर्व में 2967 बाघ बताये जा रहे हैं, जो भ्रामक है। 

बाघों को बचाने एवं बढ़ाने के नाम पर हजारों करोड़ रूपया खर्च किये जाने के बावजूद रणथंभौर राष्ट्रीय पार्क में बताये जा रहे बाघों में वर्ष 2017 तक 26 बाघ लापता बताये जा रहे हैं जबकि ज्यादातर बाघ शिकार की भेंट चढ़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि रणथम्भौर जैसे ही हालात अन्य बाघों के आवास राष्ट्रीय पार्कों के हैं। श्री जाजू ने सरकार द्वारा बताये जा रहे 2967 बाघों की संख्या को भ्रामक बताते हुए वास्तविक बाघों की संख्या दो हजार से भी कम होने का दावा किया है।  उन्होंने कहा कि बाघों का शिकार बाघों की खाल, हड्डियां, नाखून, बाल एवं उनके अंगों को महंगे दामों में अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों को बेचकर धन कमाने की लालसा के चलते किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आजादी के समय देश में 40 हजार बाघ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। हजारों करोड़ रूपया बाघों के संरक्षण पर खर्च करने के बावजूद बाघों की संख्या नाममात्र की रह गई है जो चिंताजनक है।

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