नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 2021-22 के मौसम के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास के बीज की अधिकतम बिक्री मूल्य को 5 प्रतिशत बढ़ाकर 767 रुपये प्रति पैकेट कर दिया है। देश में बीटी कपास के बीजों की दो किस्में बिकती हैं। बॉलगार्ड कक किस्म की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है जबकि देश में वर्तमान में बॉलगार्ड-क की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम है। एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार बोलगार्ड- कक (बीजी- कक) बीटी कपास बीज की अधिकतम बिक्री मूल्य 2021-22 सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के लिए 450 ग्राम प्रति पैकेट 730 रुपये प्रति पैकेट बढ़ाकर 767 रुपये प्रति पैकेट कर दिया गया है।
2021-22 सीजन के लिए हालांकि बोलगार्ड- क (बीजी- क) की अधिकतम बिक्री मूल्य 635 रुपये प्रति पैकेट अपरिवर्तित रखी गई है। सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया एंड एलायंस ऑफ एग्री इनोवेशन के महानिदेशक राम कौंडिन्या ने कहा हमें भारत सरकार द्वारा कपास के बीज के मूल्य में 5 प्रतिशत की वृद्धि किए जाने की घोषणा की खुशी है। यह वृद्धि हमारे द्वारा निवेदित 10 प्रतिशत से कम है, लेकिन हम इसे सरकार की ओर से अच्छा संकेत मानते हैं। हमें खुशी है कि सरकार को हमारे तर्क में सार दिखा और वो मूल्य में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने के लिए सहमत हो गए।
उन्होंने कहा कि टैक्सटाईल उद्योग इस दशक में अपने उद्योग की वृद्धि करने की आक्रामक योजना लेकर आया है। कपास का उत्पादन मौजूदा 3.7 करोड़ गांठों से बढ़ाकर 2027 तक 5.7 करोड़ गांठें किए जाने की आवश्यकता है। यह तब तक संभव नही है, जब तक हम बीज में प्रौद्योगिकी को अपग्रेड न करें।कपास की पैदावार और उत्पादन नई प्रौद्योगिकी की शुरुआत एवं ब्रीडिंग में गिरते निवेश के कारण थम गए हैं। विश्व के कपास बाजार में भारत की प्रतिष्ठित स्थिति के खोए जाने का खतरा है। भारत थमती पैदावार, किसानों के गिरते लाभ, गिरते निर्यात के चलते अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खो रहा है और अन्य देश अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाते जा रहे हैं।
सन 2011 से भारत से कपास के निर्यात की मात्रा 70 प्रतिशत गिरी है, जबकि इसी अवधि में ब्राजील से निर्यात 80 प्रतिशत और अफ्रीका से निर्यात 116 प्रतिशत बढ़ा है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ अफ्रीकी देशों और ब्राजील के कपास के किसान अपने निर्यात की मात्रा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा बीज उत्पादन की कीमत लगातार बढ़ रही है। श्रम, फर्टिलाईज़र एवं फसल सुरक्षा जैसे इनपुट की लागत भी काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। उदाहरण के लिए, संकरण एवं संसेचन के लिए खेतों मेंलगाए गए श्रमिक कीलागत 75,000 रुपए प्रति एकड़ से ज्यादा है।
फर्टिलाईज़र की लागत भी 30 प्रतिशत बढ़ी है और फसल सुरक्षा की लागत डॉलर के मुकाबले रुपया टूटने के चलते बढ़ रही है।इस साल महामारी के चलते स्थिति और ज्यादा गंभीर हुई क्योंकि इस दौरान श्रमिकों की उपलब्धता अस्थिर एवं महंगी थी।दू सरी तरफ बीजी। कपास की एमआरपी बढ़ती लागत के समतुल्य नहीं बढ़ी। पिछले पाँच सालों में इसे 800 रुपए से घटाकर 730 रुपए कर दिया गया, जिसमें से बीज का हिस्सा (गुण मूल्य को हटाकर)751 रुपए प्रति पैकेट से घटकर 730 रु.प्रति पैकेट हो गया।