जयपुरः मशहूर कहावत है - "सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठ" राजस्थान की सियासत में ऐसा ही कुछ इन दिनों चल रहा है. पार्टी सतारुढ़ कांग्रेस हो या विपक्षी बीजेपी दोनों में ही बयानवीरों में होड़ मची है कि कौन अपनी जुबान से खुद को ज़्यादा निष्ठावान साबित करे. अब ख़ास बात ये है कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव अभी ढाई साल दूर है. लेकिन दोनों ही दलों के नेता खूब बयान देने में व्यस्त है.
अब कांग्रेस राज्य की सत्ता पर काबिज है तो पहले इसी पार्टी बात करते है. यहां सीधे-सीधे दो खेमे हैं. सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का खेमा. सचिन पायलट ने पिछले साल जुलाई में अशोक गहलोत के खिलाफ खुलेआम बगावत का जो बिगुल फूंका था उसकी धुन अभी तक राजस्थान कांग्रेस में सुनाई दे रही है.
वैसे तो आलाकमान के दखल से उस वक़्त दोनों ही खेमों के के बीच सुलह सफाई हो गई थी लेकिन पायलट गुट को इस बगावत की बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी. खुद सचिन पायलट की डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से रवानगी हुई और उनके खेमे के रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह का मंत्री पद गया था.
अब करीब दस महीने बाद फिर से राजस्थान कांग्रेस में कलह मचता दिख रहा है. इस बार सचिन तो खामोश हैं लेकिन उनके खेमे से वेद प्रकाश सोलंकी, बृजेन्द्र ओला, हरीश मीणा, मुकेश भाखर और राम निवास गावड़िया जैसे विधायक जरुर मंत्रिमंडल विस्तार और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राजनैतिक नियुक्ति देने जैसी मांग उठाकर अपनी पीड़ा जाहिर कर रहे है.
दूसरी तरफ सीएम अशोक गहलोत खेमा भी अपनी राजनैतिक ताकत दिखाने के लिए बयानबाजी में पीछे नहीं है. गहलोत खेमे ने बड़े सधे हुए अंदाज में अपनी चाल चली. पायलट खेमे के विधायक जब मंत्रिमंडल विस्तार का सुर अलाप रहे थे तब गहलोत ने अपने सोशल मीडिया पर सूचना जारी कर दी कि वो अभी पोस्ट कोविड दौर से गुजर रहे है इसलिए डॉक्टर्स ने उन्हें एक दो महीने तक लोगों से व्यक्तिगत मुलाकात नहीं करने के निर्देश दिए है. गहलोत ने साफ़ साफ़ राजनैतिक सन्देश दे दिया कि अभी मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होने जा रहा.