नई दिल्ली। निजी एवं स्व-वित्तपोषित विधि कॉलेजों/विश्वविद्यालयों में कानून की पढ़ाई कर रहे छात्रों को फिलहाल फीस में रियायत दिलवाने के लिए भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) से हस्तक्षेप की मांग की गयी है। उच्चतम न्यायालय के वकील सत्यम सिंह के अलावा तीन वकीलों और कानून के दो विद्यार्थियों ने बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। शनिवार देर शाम भेजे गये पत्र में कहा गया है कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से त्राहिमाम कर रही है। पूरा भारत लॉकडाउन की स्थिति में है और आम आदमी आर्थिक तंगी से गुजर रहा है।
पत्र में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण अभिभावक निजी एवं स्व-वित्त पोषित कॉलेजों/विश्वविद्यालयों द्वारा मांगी गयी मोटी फीस देने की स्थिति में नहीं हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि ऐसे समय में विधि छात्रों से सेमेस्टर/ वार्षिक फीस की मांग करना अनैतिक एवं अवांछित है।
पत्र में दावा किया गया है कि देश के लगभग सभी हिस्सों से विधि छात्रों ने उनसे इस बाबत शिकायत की है और कहा है कि यदि समय सीमा के भीतर फीस नहीं जमा करायी गयी तो इन विद्यार्थियों को उनकी कक्षाओं में प्रवेश नहीं दिया जायेगा। संभव है उन विद्यार्थियों को परीक्षा में शामिल भी न होने दिया जाये या उनके परीक्षाफल भी रोक दिये जायें। ऐसे विद्यार्थियों का प्रवेश भी निरस्त हो सकता है।
जस्टिस फॉर राइट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष सिंह ने ‘उन्नीकृष्णन, जे.पी एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश सरकार एवं अन्य’ के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है। शिक्षा प्रदान करना भारत में कभी भी व्यावसायिक कारोबार नहीं रहा।
उन्होंने लिखा है कि एडवोकेट एक्ट 1971 की धारा सात के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया का सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देना और देश के विश्वविद्यालयों के साथ सम्पर्क करके शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखना है।
आवेदनकर्ताओं ने इस मामले में बीसीआई से हस्तक्षेप करने की मांग की है। आवेदनर्ताओं में श्री सिंह के अलावा वकील अमित कुमार शर्मा, वकील शिवम सिंह और वकील आरती सिंह तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष का विधि छात्र प्रतीक शर्मा तथा एमिटी यूनिवर्सिटी की तीसरे वर्ष की विधि छात्रा दीक्षा दादू शामिल हैं।