नई दिल्ली। देश के सबसे पुराने केसों में से एक अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया जा रहा है। पहले फैसले में अयोध्या पर शिया वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी है। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। अयोध्या मामले पर अंतिम फैसला पढ़ने से पहले बताया कि यह फैसला सभी पांच जजों ने सर्वसम्मति से लिया है। इस मामले में न्यायालय ने 40 दिन तक दलीलें सुनी थीं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। देश के सबसे पुराने केसों में से एक अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया जा रहा है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है। अयोध्या में रामजन्मभूमि न्यास को विवादित जमीन दी गई है। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अलग जगह जमीन देने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि न्यास को विवादीत जमीन देते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार ट्रस्ट बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन महीने में सरकार योजना बनाए। अदालत ने मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जगह देने का आदेश दिया है। संविधान पीठ ने मुसलमानों को मस्जिद के लिए दूसरी जमीन देने का आदेश दिया है। निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता प्रभात सिंह ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने हमारे दावे को ख़ारिज किया है। इस पर हम क्या कह सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान है। हमारी मांग है कि मंदिर बन। आम जनमानस की मांग है मंदिर बने। हम इसका सम्मान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि अंग्रेजों के आने के पहले से राम चबूतरा और सीता रसोई की हिंदू पूजा करते थे। रिकार्ड के सबूत बताते हैं कि विवादित जमीन के बाहरी हिस्से में हिंदुओं का कब्जा था।
यात्रियों के वृतांत और पुरातात्विक सबूत हिंदुओं के हक में हैं। 6 दिसंबर 1992 को स्टेटस को का ऑर्डर होने के बावजूद ढांचा गिराया गया। लेकिन सुन्नी बोर्ड एडवर्स पोसेसन की दलील साबित करने में नाकाम रहा है। लेकिन 16 दिसंबर 1949 तक नमाज हुई। सूट 4 और 5 में हमें सन्तुलन बनाना होगा हाई कोर्ट ने 3 हिस्से किये। कोर्ट ने कहा है कि हिंदुओं के वहां पर अधिकार की ब्रिटिश सरकार ने मान्यता दी। 1877 में उनके लिए एक और रास्ता खोला गया। अंदरूनी हिस्से में मुस्लिमों की नमाज बंद हो जाने का कोई सबूत नहीं मिला है। अंग्रेज़ों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई। 1856 से पहले हिन्दू भी अंदरूनी हिस्से में पूजा करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे की पूजा करने लगे। उन्होंने कहा है कि फिर भी मुख्य गुंबद के नीचे गर्भगृह मानते थे। इसलिए रेलिंग के पास आकर पूजा करते थे. साल 1934 के दंगों के बाद मुसलमानों का वहां कब्ज़ा नहीं रहा। वह जगह पर अपना दावा साबित नहीं कर पाए हैं।