दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद को लेकर अरविंद केजरीवाल के लिए राह आसान नजर नहीं आ रही है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में केजरीवाल को सीएम पद से हटाने के लिए एक जनहित याचिका डाली गई है। दिल्ली हाई कोर्ट इस जनहित याचिका पर कल यानी 28 मार्च को सुनवाई करेगा। इस मामले पर एक्टिंग चीफ जस्टिस की बेंच सुनवाई करेगी। बता दें कि यह मामला एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष लिस्टेड किया गया है।
जानकारी दे दें कि 22 मार्च को हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की गई थी। याचिका दिल्ली के रहने वाले सुरजीत सिंह यादव ने डाली है, जो खुद को किसान और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं। सुरजीत सिंह यादव का कहना है कि वित्तीय घोटाले के आरोपी मुख्यमंत्री को सार्वजनिक पद पर बने रहने की परमिशन नहीं मिलनी चाहिए। बता दें कि ईडी ने अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को दिल्ली शराब नीति मामले में गिरफ्तार किया है।
याचिकाकर्ता सुरजीत ने अपनी याचिका में कहा कि केजरीवाल के पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में दिक्कत आएगी, साथ ही न्याय की प्रक्रिया भीबाधित होगी, और राज्य में कांस्टीट्यूशनल सिस्टम भी ध्वस्त हो जाएगा। सीएम ने गिरफ्तार होने के कारण एक तरह से मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद खो दिया है, चूंकि वह हिरासत में भी हैं, इसलिए उन्होंने एक लोक सेवक होने के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने से खुद को अक्षम साबित कर लिया है, अब उन्हें इस मुख्यमंत्री पद पर नहीं बने रहना चाहिए।
सुरजीत यादव ने आगे कहा कि जेल में बंद मुख्यमंत्री किसी भी ऐसे काम को करने में असमर्थ होंगे जिसका कानून उसे परमिशन देता है, अब ऐसे में उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाती है तो कोई भी राज्य के भले से जुड़ी बात, चाहे वह गुप्त प्रकृति की हो जेल में उन तक पहुंचने से पहले जेल अधिकारियों तक सुरक्षा की दृष्टि से पहुंचेगी। इससे केजरीवाल के जरिए सीधे तौर पर संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत मुख्यमंत्री पद की दिलाई गई गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन होगा।
इसके अलावा, याचिका में आगे कहा गया है कि दिल्ली में प्रदेश सरकार के कामकाज के लेन-देन का नियम, 1993 एक मुख्यमंत्री को कैबिनेट के किसी भी विभाग से फाइलें मंगाने का अधिकार देता है। अब ऐसे में अगर केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो वह अपने अधिकारों के दायरे में होंगे और उन फाइलों की जांच की मांग कर सकते हैं जिनमें उन्हें आरोपी बताया गया है। ये स्थिति आपराधिक न्यायशास्त्र के लोकाचार के विरुद्ध है।