नैनीताल। कोरोना महामारी के कारण उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों को पेरोल पर छोड़े जाने के मामले में उच्च न्यायालय ने उच्चस्तरीय कमेटी को समीक्षा कर आवश्यक निर्णय लेने के निर्देश दिये हैं। अदालत ने कोरोना के हालातों को देखते हुए कमेटी को हर महीने बैठक करने के निर्देश भी दिये हैं। मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने कोरोना महामारी के विकृत स्वरूप को देखते हुए जेलों में बंदियों की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता दिखायी और अदालत में पेश जेल महानिरीक्षक आईपी अंशुमान से पूरी जानकारी हासिल की।
अंशुमान ने बताया कि प्रदेश की जेलों में क्षमता से अधिक बंदी हैं। इनमें लगभग 2173 सजायाफ्ता और 4474 विचाराधीन हैं। हरिद्वार एवं देहरादून की जेलों में भी स्थिति गंभीर है। उन्होंने बताया कि अभी तक 4421 बंदियों की कोरोना जांच की जा चुकी है जिनमें से 59 में कोरोना की पुष्टि हुई है। एक बंदी हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती है। कुछ बंदियों को वैक्सीन लगायी गयी है जबकि बाकी के लिये जिलाधिकारियों को पत्र लिखा गया है। उन्होंने बताया कि बंदियों के लिये चिकित्सक के साथ ही कोरोना गाइड लाइन के अनुसार जेलों में सभी संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि बंदियों को पेरोल पर छोड़ने के लिये पिछले साल उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर प्रदेश में उत्तराखंड स्टेट लीगत सर्विस अथॉरिटी की अगुवाई में एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी की ओर पिछले साल अक्टूबर में 705 बंदियों को पेरोल पर छोड़ने की बात कही गयी जिनमें से 699 को छोड़ा गया था।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अजयवीर पुंडीर ने बताया कि सुनवाई के बाद अदालत ने कमेटी को दो सप्ताह में बैठक कर सात या सात साल से कम सजायाफ्ता बंदियों को पेरोल पर छोड़े जाने के संदर्भ में आवश्यक कदम उठाये जाने के निर्देश दिये हैं। साथ ही प्रदेश सरकार को निर्देश दिये कि तीन सप्ताह में विस्तृत जवाब पेश करे। यही नहीं अदालत ने निर्देश दिये कि सरकार बंदियों को छोड़ने से पहले उनकी कोरोना जांच अवश्य कराये। मामले में नौ जून को सुनवाई होगी।
अदालत ने यह भी कहा कि कोरोना की दूसरी लहर खत्म नहीं हुई है और तीसरी लहर की बात हो रही है। ऐसे में कमेटी हर महीने बैठक कर हालातों की समीक्षा करे। हरिद्वार निवासी ओमवीर सिंह की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि जेलों में बंदियों की संख्या कई गुना अधिक है। इससे उनमें कोरोना महामारी फैलने का खतरा है। इसलिये पिछले साल की तरह इस साल भी उन्हें पेरोल पर छोड़े जाने पर विचार किया जाना चाहिए।