नई दिल्ली। अरबपति मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने शुक्रवार को बताया कि उसने और सऊदी अरामको ने उस आपसी करार का फिर मूल्यांकन करने का फैसला किया है, जिसके तहत सऊदी अरब की कंपनी उसके ओ2सी (तेल से रसायन) कारोबार में हिस्सेदारी खरीदने वाली थी। अगस्त 2019 में दोनों पक्षों ने एक गैर बाध्यकारी करार किया था जिसके तहत सऊदी अरामको रिलायंस इंडस्ट्रीज के ओ2सी कारोबार में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने वाली थी। उन्होंने उस समय कहा था कि सौदा मार्च 2020 तक पूरा हो जाएगा, हालांकि यह समयसीमा चूक गई। कंपनी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ऐसा हुआ।
अंबानी ने इस साल भी एजीएम में कहा कि यह सौदा साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश की घोषणा भी की। हालांकि, अरामको सौदे के लिए नई समयसीमा और नए ऊर्जा कारोबार में प्रवेश की घोषणा एक साथ की गई थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि जून से लेकर अब तक क्या बदलाव हुए, जिससे पुनर्मूल्यांकन की जरूरत पड़ी। रिलायंस ने ओ2सी कारोबार को कंपनी से अलग करने के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष किए गए आवेदन को भी वापस लेने का फैसला किया है। नया ऊर्जा कारोबार आरआईएल की अलग सहायक कंपनी के अधीन है। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि इससे ओ2सी कारोबार की हिस्सेदारी बिक्री के लिए बातचीत पर कैसे असर पड़ा।
यह भी साफ नहीं है कि यदि अरामको अभी भी ओ2सी कारोबार में हिस्सेदारी लेना चाहती है, और सौदा भविष्य में पूरा हो सकता है, तो एनसीएलटी के समक्ष कारोबार को अलग करने के आवेदन को वापस क्यों लिया गया। यह भी साफ नहीं है कि क्या अरामको की दिलचस्पी नए ऊर्जा कारोबार में भी है, और इसलिए एक नए सौदे पर काम करने की जरूरत पड़ी। इस बारे में कंपनी के प्रवक्ता को भेजे गए एक ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया था।आरआईएल ने शुक्रवार रात एक बयान में कहा था, ‘‘कंपनी के व्यापार पोर्टफोलियो की विकसित होती प्रकृति के कारण रिलायंस और सऊदी अरामको ने पारस्परिक रूप से यह तय किया है कि दोनों पक्षों के लिए बदले हुए संदर्भ के मद्देनजर ओ2सी (तेल से लेकर रसायन तक) व्यवसाय में प्रस्तावित निवेश का पुनर्मूल्यांकन करना फायदेमंद होगा।’’