इजराइल और हमास की जंग अब थमती नजर आ रही है, लेकिन कूटनीति का स्तर का बढ़ता जा रहा है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन की चीन यात्रा और अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन का इजराइल विजिट इसका सीधा इशारा कर रहा है. जंग के बीच कई देशों के प्रमुख अपने हितों की योजना बनाते हुए नजर आ रहे हैं. कूटनीति किस कदर हावी हो रही है, इसे एक-एक करके समझते हैं. सबसे पहले बात रूस की. यूक्रेन के साथ जंग लड़ने वाला रूस भले पूरे घटनाक्रम में इजराइल के साथ खड़ा नजर आया है, लेकिन उसने खुलेआम फिलीस्तीन आतंकी समूह हमास की निंदा नहीं की. हमास को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया.
ईरान और हमास के रिश्ते कैसे हैं यह जगजाहिर है. अघोषिततौर पर ईरान के हमास को सपोर्ट करने की बात पहले भी सामने आ चुकी है. वह लगातार हमास का पक्ष ले रहा है. ईरान रूस का सहयोगी देश है. यही वजह है कि रूस हमास के खिलाफ बोलकर ईरान से अपने रिश्ते नहीं खराब करना चाहता. रूसी राष्ट्रपति पुतिन किस तरह की कूटनीति कर रहे हैं, अब इसे समझ लेते हैं. विश्लेषको का कहना है कि इजराइल और हमास के बीच चल रही जंग से सीधा फायदा रूस को मिल सकता है. पुतिन को लगता है कि अगर जंग जारी रहती है तो अमेरिका यूक्रेन की बजाय इजराइल को हथियार देगा. इसका फायदा पुतिन उठा पाएंगे. और यूक्रेन को सबक सिखा पाएंगे.इतना ही नहीं, जंग का असर मिडिल ईस्ट में तेल की कीमतों पर पड़ेगा. कीमतें बढ़ेंगी. इसका भी फायदा रूस को मिलेगा.
पुतिन एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं. वह हमास के विरुद्ध न बोलकर ईरान के करीब बने रहना चाहते हैं. चीन का दौरा करके पश्चिमी देशों को जवाब देना चाहते हैं और चीन के साथ सम्बंध को बेहतर बनाना चाहते हैं. मामला सिर्फ व्यापारिक सम्बंधों का ही नहीं कूटनीति का भी है. इजराइल की जवाबी कार्रवाई ने भले ही आतंकी संगठन हमास को शांत रहने पर मजबूर कर दिया है, लेकिन उसका पिछला इतिहास देखें तो यह बात साफ है कि हमास आसानी से चुप बैठने वाला नहीं है. ईरान से मिलने वाली मदद हमास को ताकत देने का काम करेगी और फिर नई योजना के साथ वह इजराइल पर हावी हो सकता है. ईरान की इजराइल को मिलने वाली धमकी से पता चलता है कि इजराइल के भविष्य में अमन दूर-दूर तक नजर नहीं आने वाला.