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अमृतसर हादसा : खुद की जान गई, पर कई को जिंदगी दे गया रावण

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 21 2018 12:00PM | Updated Date: Oct 21 2018 12:01PM
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चंडीगढ़। अमृतसर रेल हादसे में मारे गए लोगों में रावण का रोल निभाने वाले दलबीर सिंह भी हैं, जो अपनी भूमिका खत्म कर घर लौट रहे थे, उन्हें क्या पता था कि उनकी मौत राम के बाणों से नहीं रावण के रूप में आ रही तेज रफ्तार ट्रेन से हो जाएगी। उन्हें अपने 8 महीने के बेटे से मिलने की जल्दी थी, मां और पत्नी भी इंतजार कर रही थीं। ट्रैक के पास पहुंचने पर उन्होंने देखा कि लोग पुतला दहन देखने में मशगूल हैं और एक ट्रेन तेज रफ्तार से आ रही है, दलबीर आवाज देखर लोगों को हटाने में लग गए। उन्होंने कई को ट्रैक से हटा भी दिया, लेकिन खुद ट्रेन की चपेट में आ गए।
 
दलबीर की मौत की खबर सुनते ही घर में मातम पसर गया, बूढ़ी मां और पत्नी को समझ में नहीं आ रहा है कि अब उनका गुजारा कैसे होगा, घर में रिश्तेदारों और सांत्वना देने वालों का तांता लगा हुआ है। 8 महीने के मासूम बेटे को लोग दुलार रहे हैं और फिर आंखों में आंसू लिए यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इसके सिर से पिता का साया छीनने के जिम्मेदार कौन लोग हैं और उन्हें क्या सजा मिलेगी।
 
मां ने सरकार से मांगी बहू के लिए नौकरी
दलबीर की उम्र 24 साल थी। 8 महीने पहले ही उनके बेटे का जन्म हुआ था। वह पत्नी, विधवा मां और बेटे के साथ रहते थे। इस बार वह मोहल्ले की रामलीला में रावण का अभिनय कर रहे थे। किसी को इसका इल्म नहीं था कि रावण वध के साथ ही उनके जीवन का भी अंत हो जाएगा। दलबीर की मां ने सरकार से मांग की है कि उनकी बहू को नौकरी दी जाए, उन्होंने कहा कि उसकी गोद में 8 महीने का बच्चा है उसका लालन-पालन कैसे होगा, सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
 
फर्श पर पड़ी रहीं लाशें... बेटे का सिर्फ सिर ही मिला
इसका नाम मनीष है, इसने नीली जींस पहनी थी, किसी ने देखा इसे? ये सवाल अमृतसर के गुरुनानक देव अस्पताल के गलियारों में आधी रात को बेतहाशा भागते हुए एक अधेड़ उम्र का शख्स लोगों से पूछ रहा था। उसने मौके पर खड़े प्रशासन और पुलिस के लोगों को नकार दिया। उसके हाथ में एक मोबाइल था, जिसमें तस्वीर दिखाकर वह लोगों से उसके बारे में पूछताछ कर रहा था। इस बदहवाश पिता ने वॉट्सएप पर अपने बेटे के सिर्फ सिर की तस्वीर देखी थी। पिता को बेटे का सिर तो मिल गया, लेकिन शरीर के बाकी हिस्से नहीं मिल सके। 
वहीं अस्पताल में हालात खराब थे। एक स्वयंसेवी संगठन के शुभम शर्मा ने कहा, यहां बर्फ नहीं है। कोई मास्क नहीं है। हमने अधिकारियों से कुछ इंतजाम करने के लिए कहा था। डॉक्टर यहां लाशों को छूने के लिए तैयार नहीं थे। वे हमसे कह रहे थे कि हम उनके शरीरों से आईडी प्रूफ और कुछ दस्तावेज ढूंढकर निकालें। एक स्वयंसेवक ने बताया कम से कम 19 लाशें गुरुनानक देव अस्पताल के अस्थायी शवगृह में फर्श पर पड़ी हुई थीं। वहीं एक का तो सिर भी नहीं मिल पा रहा है।
 
दूसरा जलियांवाला बाग जैसा हादसा देखा
अपने 19 साल के बेटे नीरज की लाश का इंतजार कर रहे 54 साल के मुकेश कुमार उसकी बात करते हुए फफक पड़े। मुकेश ने कहा, मैंने उसे कहा था कि मत जाओ। मैंने उसे मना किया था कि रेलवे ट्रैक के नजदीक न जाओ। ये खतरनाक है। नीरज का मृत शरीर ड्रेसिंग रूम में रखा था जिसे अब शवों की बढ़ती तादाद के कारण मर्चुरी बना दिया गया था। मुकेश ने कहा, अमृतसर ने दूसरा जलियांवाला बाग जैसा हादसा देखा है। ये घाव अब कभी नहीं भरेगा।
 
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