झांसी। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की नगरी झांसी में उन्हीं के नाम से बना ध्यानचंद स्टेडियम बाहर से तो काफी चमकता नजर आता है लेकिन यहां खिलाडियों के लिए सुविधाओं का अभाव है। पहली नजर में सामान्य से नजर आने वाले इस स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। स्टेडियम में आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओ में खिलाड़ियों को स्टेडियम के जिन हॉस्टलों में रखा जाता है वहां के हालात बेहद दयनीय है।
जिन इमारतों में महिला खिलाड़ियों को रूकाया जाता है वहां खिड़कियों के शीशे टूटे हैं ,उनकी सुरक्षा को लेकर किसी को कोई सरोकार नहीं है। इमारत में छतों पर रखी टंकियों से लगातार पानी टपक रहा है लेकिन शौचालयों में पानी नदारद है। जिन कमरों में खिलाड़यिो को ठहराया जाता है उनकी कमरों में स्विच बोर्ड टूटे पडे हैं। पंखे के रेगुलेटरों के ऊपरी कवर टूटे हैं । रात के समय इन कमरों में यूं खुले पडे बिजली के उपकरणों से किसी को करंट लगने या शॉट सर्किट के कारण कोई बड़ा हादसा हो सकता है। बात यहीं खत्म नहीं होती खिलाड़ियों के रूकने की जगह पर अव्यवस्थाओं की क्रम टूटने का नाम ही लेता नहीं दिखायी देता।
शौचालयों के वह हालात हैं कि इनका इस्तेमाल करना तो दूर बदबू और गंदगी के कारण अंदर घुसने का साहस करना भी मुश्किल है। शौचालय में सिस्टर्न टूटे पड़े हैं, शौच के बाद पानी की व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। कमरों में बच्चों का सामान रखने के लिए बनी अलमारियां टूटी पड़ी हैं, कुछ में दरवाजे लगे हैं तो कुछ के टूटे दरवाजे टांड पर ऊपर रखे गये हैं। ऐसे अमानवीय हालात में दूर दराज के इलाकों से आने वाले बच्चों को रखा जाता है।
छोटे छोटे कस्बों, गांवों से शहरों और बड़े बड़े टूर्नामेंटों में खेलने का अवसर मिलने का सपना संजोए आये इन बच्चों का पूरा ध्यान अपने खेल पर रहता है और आगे बढ़ने को तत्पर बच्चे उस सपने के साकार होने की कड़ी के रूप से वर्तमान दौरे को देखकर आधारभूत आवश्यकताओं के भी पूरा नहीं हो पाने पर भी ये सवाल नहीं उठा पाते हैं। दूसरी ओर एक प्रतियोगिता के समाप्त हो जाने के बाद नये बच्चे आते हैं और कोई स्थायी रूप से यहां नहीं रहता इसलिए अव्यवस्थाओं को झेलकर चला जाता है लेकिन इस सबके बीच सवाल पैदा होता है कि जब सरकार और शासन की ओर से देश में बच्चों को खेल से जोड़ने और खेल प्रतिभाओं को और चमकने का अवसर प्रदान करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है तो वह जा कहां रहा है और खिलाड़ी हर तरह की कमियों से क्यों जूझ रहे हैं।
स्टेडियम की इन अव्यवस्थाओं पर जब क्षेत्रीय खेल अधिकारी सुरेश बोनकर से बात की गयी तो उन्होंने फंड की कमी का रोना रोया और खिलाडियों को जिन इमारतों में रखा जाता है वहां फैली तमाम अव्यवस्थाओं का ठीकरा भी उन्हीं खिलाड़यिों के सिर फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि विभिन्न खेलों में हिस्सा लेने आये यह खिलाड़ी जब हार जाते हैं तो अपनी हताशा निकालने के लिए सामान तोड़ देते हैं। स्टेडियम में रखरखाव को लेकर आने वाले पैसे की बात टालकर वह सारी अव्यवस्थाओं के लिए खिलाडियों को ही जिम्मेदार बताते हैं।
दूसरी ओर दद्दा की नगरी में हॉकी स्टेडियम में हॉकी खिलाडियों को कोच हाल ही में मिला है। पिछले तीन चार माह से यहां हॉकी का कोई स्थायी कोच था ही नहीं । हॉकी का हॉस्टल भी यहां से जा चुका है। खेल अधिकारी समस्याओं को किसी तरह की समस्या मानने को ही तैयार नहीं है ऐसे में किसी के लिए यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं कि स्टेडियम में हालात सुधरने की कितनी संभावनाएं हैं।