झारखंड की राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले सत्तापक्ष और विपक्ष में गहमागहमी तेज हो गई है। इस बीच, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होना राज्य की सियासत में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है। कभी शिबू सोरेन के करीबी और झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता रहे चंपाई सोरेन ने शुक्रवार को बीजेपी का दामन थाम लिया। झारखंड बीजेपी प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई, जिससे राज्य की राजनीति में एक नई दिशा की संभावना बनी है।
आपको बता दें कि चंपाई सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से अलग होना सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया है। यह अलगाव तब हुआ जब पार्टी ने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल कर दिया, जबकि चंपाई सोरेन को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जेएमएम के इस फैसले से चंपाई सोरेन नाखुश थे और इसे उन्होंने अपनी राजनीतिक उपेक्षा के रूप में देखा। चंपाई का बीजेपी में शामिल होना इस बात का संकेत है कि वह अपने राजनीतिक भविष्य के लिए एक नया रास्ता तलाश रहे हैं।
वहीं चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद हेमंत सोरेन ने तेजी से कदम उठाते हुए रामदास सोरेन को प्रदेश सरकार में मंत्री पद की शपथ दिलाई। रामदास सोरेन जो घाटशिला से जेएमएम विधायक हैं, चंपाई सोरेन की तरह ही कोल्हान क्षेत्र के बड़े नेता हैं और आदिवासी समाज में उनकी मजबूत पकड़ है। उन्होंने झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ सक्रिय भूमिका निभाई थी और पहली बार 2009 में और फिर 2019 में विधायक बने थे। रामदास सोरेन की मंत्री पद पर नियुक्ति को जेएमएम द्वारा डैमेज कंट्रोल के रूप में देखा जा रहा है, जिससे पार्टी की स्थिति को स्थिर किया जा सके।
साथ ही आपको बता दें कि चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने को पार्टी का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, खासकर आदिवासी वोट बैंक के लिहाज से झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं, जिनमें कोल्हान क्षेत्र प्रमुख है। चंपाई सोरेन का इस क्षेत्र में मजबूत प्रभाव है और बीजेपी उनके जरिए आदिवासी मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासी क्षेत्रों में कमजोर रहा था, जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था।
इसके अलावा आपको बता दें कि 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड की कुल जनसंख्या में 26 प्रतिशत से अधिक आदिवासी हैं, जिनकी संख्या करीब 77 लाख है। इन आदिवासी मतदाताओं की भूमिका झारखंड की राजनीति में अहम मानी जाती है। बीजेपी के लिए चुनौती है कि वह चंपाई सोरेन के जरिए आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में कर सके, खासकर जब बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं का प्रभाव कमजोर होता दिख रहा है।
बहरहाल, चंपाई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना और रामदास सोरेन की मंत्री पद पर नियुक्ति से झारखंड की राजनीति में नई हलचल पैदा हो गई है। आगामी विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये दोनों घटनाक्रम सत्तापक्ष और विपक्ष के समीकरणों को कैसे प्रभावित करते हैं। बीजेपी का सियासी दांव और जेएमएम का डैमेज कंट्रोल प्लान, दोनों ही झारखंड की राजनीतिक धारा को नया मोड़ देने के लिए तैयार हैं।