नई दिल्ली। विपक्ष ने कॉर्पोरेट कर में कटौती के वास्ते अध्यादेश लाने के सरकार के फैसले को गैर-लोकतांत्रिक करार देते हुए सोमवार को कहा कि यह कोई इतना जरूरी कदम नहीं था जिसके लिए संसद सत्र का इंतजार नहीं किया जा सकता था। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ‘कराधान विधि विधेयक, 2019’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि संविधान में अध्यादेश लाने की व्यवस्था सिर्फ आकस्मिक स्थिति के लिए की गयी है। ‘कराधान विधि अधिनियम, 2019’ को रद्द करने संबंधी सांविधिक संकल्प भी उन्होंने पेश किया। चौधरी ने कहा कि मौजूदा सरकार इस व्यवस्था का दुरुपयोग कर रही है और गैर-जरूरी कार्यों के लिए अध्यादेश ला रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार अनावश्यक काम कर भय का माहौल पैदा कर रही है इसलिए उद्योगपतियों का इस पर भरोसा नहीं है। उद्योगपतियों ने खुलकर इसकी नीतियों की आलोचना शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि सरकार को आर्थिक मंदी से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए था, लेकिन वह इसे भाँपने में विफल रही जिससे देश आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए दीर्घकालीन योजना बनाने की बजाय वह तात्कालिक उपाय कर रही है। यह गुमराह करने का प्रयास है और इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती नहीं मिलेगी। इसलिए उसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्रियों की मदद लेकर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
कांग्रेस नेता ने सुझाव दिया कि अध्यादेश लाकर कराधान जैसे उपाय कर अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की सरकार की कोशिश बहुत दुरुस्त नहीं है। अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। कारोबार तथा निवेश बढ़ाने के लिए सरकार उद्योगपतियों को वस्तु एवं सेवा कर में छूट तथा अन्य रियायतें दे सकती है ताकि उन्हें अपना काम करने में दिक्कत न हो और निवेश को बढ़ावा मिल सके। भारतीय जनता पार्टी के निशिकांत दुबे ने कहा कि विपक्षी दल बराबर जीडीपी को लेकर सरकार पर हमला करते हैं लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि अंतिम व्यक्ति तक सुविधाओं को पहुँचाना और उसे संपन्न बनाना है तथा यही सबसे बड़ा जीडीपी है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ का सपना लेकर चल रही है और उसका लक्ष्य देश के आखिरी व्यक्ति को जरूरी सुविधा उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि सदन में कांग्रेस के नेता का कहना है कि सरकार ने उनकी सलाह पर क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी पर हस्ताक्षर नहीं किया, लेकिन असलियत यह है कि इस पर हस्ताक्षर करने को लेकर कांग्रेस की सरकार में उतावलापन था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने ही 2011 में आरसीईपी का निर्णय लिया था। मोदी सरकार ने इसका विरोध किया और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया है।