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Lifestyle

जॉब और जीवन के बीच आवश्यक है तालमेल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 14 2019 2:20AM | Updated Date: Oct 14 2019 2:20AM
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नई पीढ़ी में नौकरी बदलने की एक वजह दफ्तर और जीवन के बीच तालमेल नहीं बिठा पाना भी है। इससे उपजी निराशा उन्हें कार्य में सकारात्मक नहीं होने देती। एक मार्केटिंग पेशेवर सुबह लगभग 8 बजे घर से निकलते हैं, ताकि 9.30 तक दफ्तर पहुंच जाएं। घर से दफ्तर तक पहुंचने के दौरान भी टारगेट अचीव करने का दबाव दिमाग पर हावी रहता है। काम के दबाव के साथ घर के कुछ काम न कर पाने का अपराध-बोध मन को मथता रहता है। महानगरीय जीवनशैली में दफ्तर और जीवन के बीच तालमेल बैठाने का दबाव पुरुषों के साथ भी है।
 
आसान नहीं ये तालमेल : घर-बाहर का तालमेल बनाना मुश्किल लक्ष्य है। एक जॉब पोर्टल की मानें तो लगभग 60 प्रतिशत भारतीय पेशेवर मानते हैं कि घर-दफ्तर के बीच सामंजस्य बिठाना उनके लिए दूर की कौड़ी है। इससे अनिद्रा, बेचैनी, अवसाद जैसी कई समस्याएं हो रही हैं।
 
संतुलन का सवाल : आखिर दफ्तर और जीवन के बीच तालमेल का मतलब क्या है? एक 22 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर कहते हैं, मेरे लिए इसका अर्थ है काम के लचीले घंटे, अपने शौक और रुचियों के लिए कुछ वक्त निकाल पाना और हां, घर लौटने के बाद और छुट्टी के दिन काम न करने और वर्क फ्रॉम होम की सुविधा भी। संगीत और कला के शौकीन अभिनव को अपनी रुचियों के लिए समय नहीं मिल पाता, जिससे वह परेशान हैं और नौकरी बदलने के प्रयास में जुटे हैं।
 
नियोक्ता भी दे रहे हैं साथ
बड़े शहरों में कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम की सुविधाएं शुरू की हैं, लेकिन भारतीय पारिवारिक ढांचे में यह व्यवस्था बहुत सफल नहीं कही जा सकती। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को छुट्टियों पर जाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसके लिए अतिरिक्त भत्ते भी दिए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में बार-बार नौकरियां बदलने के चलन को देखते हुए कंपनियां इस पर भी विचार कर रही हैं कि कैसे उनके कर्मचारी काम के साथ ही अपनी छुट्टियां भी ले सकें, ताकि वे दफ्तर और जीवन में बेहतर तालमेल बना सकें।
 
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