रफी मोहम्मद शेख-
इंदौर। एमफिल और पीएचडी को पूरा करने में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा कोर्स वर्क को अनिवार्य किया गया है। इसमें पढ़ाए जाने वाले चार विषयों के लिए छह माह का समय निश्चित किया गया है, लेकिन देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी में इस अनिवार्य कोर्स वर्क को पार्ट टाइम कर मजाक बना दिया गया है। अधिकांश विषयों में इस कोर्स वर्क में जाए बगैर भी पास होना भी बहुत आसान कर दिया है। डिपार्टमेंट अब इसे केवल कमाई का साधन बनाकर बैठे हैं, जबकि यूजीसी की मंशा इससे रिसर्च सिखाने की है।
यूजीसी ने कोर्स वर्क के लिए जो समय निश्चित किया है, उसमें कुल चार विषय रिसर्चर को पढ़ने होते हैं। इसमें रिसर्च मैथोडोलॉजी, रिव्यू ऑफ पब्लिश रिसर्च, कम्प्यूटर एप्लीकेशन और एडवांस कोर्स शामिल हैं। पहले इसमें केवल तीन विषय होते थे, लेकिन पिछले साल से संबंधित विषय में एडवांस कोर्स भी जोड़ा गया है।
रिसर्च के लिए तैयार हो सकें
इस कोर्स वर्क में पास होने के लिए 50 प्रतिशत मार्क्स लाना जरूरी किया गया है। पहले 40 प्रतिशत मार्क्स तय थे। पहले कोर्स वर्क पीएचडी के बाद भी किया जा सकता था, लेकिन नए पैटर्न में सबसे पहले कोर्स वर्क कराया जाता है। इसमें अलग-अलग विषय एमफिल या पीएचडी के कोर्स को अच्छी तरह करने के लिए जोड़े गए हैं। सामान्य कम्प्यूटर के ज्ञान से लेकर अपने पीएचडी विषय पर पब्लिश रिसर्च जैसी कवायद करवाकर यूजीसी रिसर्चर को पीएचडी शुरू होने के पहले ही तैयार करने की कोशिश की गई है। इस कारण पुराने पीएचडी धारकों को भी इसे करना अनिवार्य किया गया है।
कुल 16 क्रेडिट की पढ़ाई
इसके लिए यूनिवर्सिटी ने भी कुल 16 क्रेडिट तय किए हैं यानी हफ्ते में कम से कम 16 घंटे की पढ़ाई। इसमें से वाइवा के तीन क्रेडिट को हटा भी दिया जाए तो भी कम से कम 13 क्रेडिट यानी 13 घंटे की पढ़ाई कराना जरूरी है। देश की अधिकांश यूनिवर्सिटीज इस कोर्स वर्क को बड़ी गंभीरता से पढ़ाती हैं और पूरे हफ्ते क्लासेस लगती है। जहां पर इसमें छूट दी जाती है, उसमें कम से कम तीन दिन तो साढ़े चार-चार घंटे की क्लासेस लगाई जाती है, ताकि इस क्रेडिट को पूरा किया जा सके। प्रदेश में गवर्नमेंट कॉलेजों के प्रोफेसर्स को तो इसके लिए बकायदा अवकाश दिया जा रहा है।
दो दिन ही क्लासेस
अधिकांश डिपार्टमेंट में यह कोर्स वर्क केवल नाम के लिए चला रहे हैं। केवल शनिवार और रविवार क्लासेस लगाई जाती है और भी केवल शाम को। इसमें भी तीन-चार घंटे ही पढ़ाई होती है। कागजों में इसका समय ज्यादा होता है। डिपार्टमेंट इस कोर्स वर्क के लिए 10 हजार रुपए फीस वसूलते हैं, लेकिन पढ़ाई के नाम पर अंत में केवल मार्कशीट दे दी जाती है।
फेल होने का कोई चांस नहीं
कोर्स वर्क में पास होना भी आसान कर दिया है। कई डिपार्टमेंट ने रिव्यू ऑफ पब्लिश रिसर्च की क्लासेस खत्म कर उसे गाइड के साथ पूरा करने के लिए छोड़ दिया है , ताकि उनका काम कम हो इसके नंबर सीधे रिसर्चर को देकर पास किया जा सके। उसे तीन क्रेडिट इसके और तीन वाइवा के सीधे नंबर मिलेंगे। उधर, जो तीन क्लासेस होती हैं, उसमें पॉसिंग के लिए भी असाइनमेंट का दांव खेला जाता है। करीब 50 प्रतिशत नंबर इसमें ही दे दिए जाते हैं, जिससे उसके फेल होने का कोई चांस ही नहीं रहे।
75 प्रतिशत अटैंडेंस जरूरी
कुछ डिपार्टमेंट 75 प्रतिशत अटैंडेंस को अनिवार्य बनाते हैं, किंतु बाकी डिपार्टमेंट में केवल कागजों पर उपस्थिति दर्ज हो जाती है। इसके लिए सिस्टम ही नहीं है। पहचान और प्रभाव से आप बिना आए भी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। न तो यूनिवर्सिटी और न ही डिपार्टमेंट इसे पूरा कराने के लिए गंभीर है। कॉमर्स जैसे कुछ डिपार्टमेंट में काम करने वाले प्रोफेसर्स ही पिछले सालों में कोर्स वर्क की मेरिट में आए हैं। यूजीसी ने कोर्स वर्क को भी कुल 15 क्रेडिट होंगे और 250 मार्क्स में बांटा है। यानी कोर्स वर्क में भी क्रेडिट सिस्टम को लागू कर एक सेमेस्टर के इस कोर्स वर्क में उपस्थिति को भी जरूरी किया गया है।
नहीं कर रहे तो देखेंगे..
इसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों को देखना भी जरूरी है। अधिकांश नौकरीपेशा है, लेकिन हफ्ते में क्रेडिट के अनुसार निश्चित घंटों की पढ़ाई जरूरी हैं। अगर डिपार्टमेंट इसका पालन नहीं कर रहे हैं तो हम देखेंगे।
- डॉ. वीबी गुप्ता, कोआर्डिनेटर - पीएचडी सेल