मुंबई। बॉलीवुड में सी.रामचंद्र का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने न केवल संगीत निर्देशन की प्रतिभा से बल्कि गायकी, फिल्म निर्माण, निर्देशन और अभिनय से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाये रखा। फिल्म जगत में ‘अन्ना साहब’ के नाम से मशहूर सी.रामचंद्र से फिल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही। वर्ष 1918 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गांव पुंतबा में जन्मे सी.रामचंद्र का रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा गंधर्व महाविद्यालय के विनाय कबुआ पटवर्धन से हासिल की। सी.रामचंद्र ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत बतौर अभिनेता यू.भी.राव की फिल्म ‘नागानंद’ से की।
उसी दौरान उन्हें मिनर्वा मूवीटोन की निर्मित कुछ फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। तभी उनकी मुलाकात महान निर्माता निर्देशक सोहराब मोदी से हुयी। सोहराब मोदी ने सी.रामचंद्र को सलाह दी कि यदि वह अभिनय के बजाय संगीत की ओर ध्यान दें तो फिल्म इंडस्ट्री में सफल हो सकते है। इसके बाद सी.रामचंद्र मिनर्वा मूविटोन के संगीतकार खान और हबीब खान के ग्रुप में शामिल हो गये और बतौर हारमोनियम वादक काम करने लगे। बतौर संगीतकार उन्हें सबसे पहले एक तमिल फिल्म में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फिल्म ‘सुखी जीवन’ की सफलता के बाद रामचंद्र कुछ हद तक बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे।
चालीस के दशक में रामचंद्र ने संगीतकार के रूप में जिन फिल्मों को संगीतबद्ध किया उनमें ‘सावन’, ‘शहनाई’, ‘पतंगा’, ‘समाधि’ एवं ‘सरगम’ प्रमुख रही। वर्ष 1951 में रामचंद्र को भगवान दादा की निर्मित फिल्म ‘अलबेला’ में संगीत देने का मौका मिला। फिल्म अलबेला में अपने संगीतबद्ध गीतों की कामयाबी के बाद रामचंद्र बतौर संगीतकार फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। यूं तो फिल्म ‘अलबेला’ में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुये लेकिन खासकर ‘शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के’, ‘भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे’, ‘मेरे पिया गये रंगून किया है वहां से टेलीफून’ ने पूरे भारत वर्ष में धूम मचा दी।