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Astrology

हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 5 2019 12:35AM | Updated Date: Jun 5 2019 12:35AM
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हिन्दू धर्म में कई ऐसी प्राचीन परम्पराएँ हैं जो सदियों से चली आ रही हैं। बाटते चले सनातन परंपरा के तहत की जाने वाली अमूमन सभी पूजा में कुमकुम का प्रयोग अवश्य किया जाता है। सिर्फ पूजा ही नहीं बल्कि अन्य मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग होता है। शक्ति की साधना में तो कुमकुम का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता हैं। पूजा की थाली में विशेष रूप से रखा जाने वाला कुमकुम न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक महत्व है।

कुमकुम का वैज्ञानिक महत्व- पूजा में प्रयोग लाए जाने वाले कुमकुम एक प्रकार की औषधि भी है। जिसका प्रयोग आयुर्वेद में त्वचा संबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। माथे पर लगाए जाने वाले कुमकुम के प्रयोग से न सिर्फ सौंदर्य बढ़ता है बल्कि इससे मन की एकाग्रता भी बढ़ती है।

सोलह श्रृंगार से जुड़ा है कुमकुम- स्त्रियों के सोलह श्रृंगार का संबंध सिर्फ उनकी सुंदरता से नहीं बल्कि घर की सुख और समृद्धि से भी जुड़ा हुआ है। सौभाग्य को बढ़ाने वाले इन सोलह श्रृंगार में कुमकुम का विशेष महत्व है। सुहागिन स्त्रियों द्वारा कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना अत्यंत शुभ माना गया है।

शुभता और सौभाग्य से संबंध- किसी भी पूजा में कुमकुम का विशेष महत्व होता है। शक्ति की साधना में कुमकुम अनंत कांति प्रदान करने वाला पवित्र पदार्थ माना गया है, जो स्त्रियों की सभी कामनाओं को पूरा करने वाला हे। कुमकुम का लाल रंग शुभता, उत्साह, उमंग और साहस का प्रतीक है। माथे पर इसे लगाने से चित्त में प्रसन्नता आती है। रविवार के दिन तांबे के लोटे में कुमकुम और अक्षत डालकर प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को अघ्र्य देने से आत्मविश्वास और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

शिव पूजन में नहीं होता प्रयोग- भले ही कुमकुम को शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना गया हो लेकिन ध्यान रहे कि शिव की पूजा में कुमकुम का निषेध है।

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