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गूगल-वॉट्सएप ने 43 साल बाद, 90 साल की महिला को अपने परिवार से मिलवाया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 20 2020 1:14PM | Updated Date: Jun 20 2020 1:15PM
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नई दिल्‍ली। इंटरनेट और सोशल मीडिया किस तरह इंसानों की मदद करते हैं महाराष्ट्र की रहने वाली पंचुबाई चार दशक के भी अधिक समय तक खान परिवार के साथ अच्चन मासी के रूप में रहीं लेकिन इस सप्ताह वे अपने पोते के साथ दोबारा मिलीं। पंचुबाई इतने साल दमोह जिले के कोटा ताल गांव की इसरार खान के साथ रहीं। इसरार को बीते माह गी पता चला कि उनकी अच्चन मौसी दरअसल महाराष्ट्र से थीं। पंचुबाई के पोते पृथ्वी कुमार शिंदे अपनी 90 साल की दादी को लेकर गए।
 
इसरार ने गूगल और व्हाट्सएप की थोड़ी मदद से पंचुबाई के पोते को ढूंढ निकाला। महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव से बुंदेलखंड क्षेत्र के दमोह तक लगभग 500 किमी की दूरी तय कर पंचुबाई वहां कैसे पहुंची थीं ये कोई नहीं जानता। दरअसल खान के ट्रक ड्राइवर पिता ने पंचुबाई को तब देखा था जब मधुमक्खियों के झुंड ने अचानक उनपर हमला कर दिया था। खान ने बताया कि 43 साल पहले जब मेरे पिता पिता स्वर्गीय नूर खान अपने घर जा रहे थे तो उन्होंने पंचुबाई को बुरे हाल में देखा था।
 
उन्होंने मधुमक्खियों के डंकसे होने वाले दर्द से राहत के लिए उन्हें कुछ जड़ी-बूटियाँ दीं। खान ने बताया कि उनके पिता ने कुछ दिनों बाद उन्हें फिर से सड़क के किनारे देखा और उनसे उनके ठिकाने के बारे में पूछा, लेकिन वह कुछ नहीं कह सकी। वह फिर उन्हें घर ले आए।  तब से वह हमारी अच्चन मौसी बन गई और पूरे गांव की भी। ये मेरे पिता द्वारा दिया गया नाम था। वह अक्सर मराठी बोलती थीं।
 
मेरे पिता और बाद में मैंने और मेरे दोस्तों ने उनके गाँव को खोजने की बहुत कोशिश की, लेकिन हमारे प्रयास बेकार रहे क्योंकि हमें उससे कोई सुराग नहीं मिला या शायद हम यह समझने में असफल रहे कि वे क्या कह रही थीं। 4 मई को, लॉकडाउन के दौरान, खान परिवार  एक साथ बैठा था। मासी ने जो कहा खान ने अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड किया और पता लगा कि मासी ने खानम नगर बोला है। बाद में, मुझे अमरावती जिले में एक खानजम नगर पंचायत मिली। Google की मदद से, मुझे खानम नगर में एक कियोस्क मालिक अभिषेक का मोबाइल नंबर मिली।
 
मैंने उनसे बात की और अपने गाँव और आस-पास व्हाट्सएप के माध्यम से मौसी की फोटो को प्रसारित करने के लिए उनकी मदद मांगी।जब अभिषेक ने मुझे बताया कि तो गाँव के एक परिवार ने मौसी की पहचान पंचुबाई के रूप में की थी और वह पृथ्वी कुमार शिंदे की दादी हैं तो  हम खुशी में झूम उठे। शिंदे ने इसके बाद खान से संपर्क किया।
 
उन्होंने उन्हें बताया कि पंचूबाई ने 2005 में अपने पति तेजपाल और तीन साल पहले बेटे भईलाल को खो दिया है।शिंदे ने बताया कि मेरे दादा तेजपाल और पिता भीलाल ने दादी के मिलने की उम्मीद खो दी थी। मेरे दादा ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी
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