वॉशिंगटन। सीनेट की एक प्रमुख समिति ने अफगानिस्तान में नाटो बलों के कमांडर के पद पर अमेरिकी जनरल जॉन निकोल्सन के नामांकन की पुष्टि कर दी है। सीनेट की ताकतवर मानी जाने वाली सशस्त्र सेवा समिति ने कल अफगानिस्तान पर कांग्रेस की एक बहस के दौरान निकोल्सन के नामांकन को मंजूरी दी। इस बहस में निवर्तमान कमांडर जनरल जॉन कैम्पबेल ने सीनेटरों के समक्ष अपना पक्ष रखा।
पिछले सप्ताह निकोल्सन ने अपने नामांकन को ले कर हुई बहस के दौरान कहा था कि वह अमेरिकी बलों की संख्या को अगले साल के शुरू में घटा कर आधा करने की योजना की समीक्षा करेंगे। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान की यह कहते हुए आलोचना की थी कि वहां आतंकियों को सुरक्षित पनाह लगातार मिल रही है।
फिलहाल जनरल निकोल्सन नाटो के जमीनी बलों के अमेरिकी सेना कमांडर हैं। वे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल :आईएसएएफ: तथा अफगानिस्तान में अमेरिकी बलों के अभियानों के चीफ ऑफ स्टाफ, पाकिस्तान ... अफगानिस्तान कोआॅर्डिनेशन सेल फॉर द जॉइंट स्टाफ के निदेशक और स्टैबिलिटी ऑफ आईएसएएफ रीजनल कमांड, साउथ के उप कमांडर सहित विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
कैम्पबेल ने बहस के दौरान कहा, लेफ्टिनेंट जनरल निकोल्सन मेरे अच्छे मित्र हैं। पिछले सप्ताह वह इस समिति के समक्ष पेश हुए थे। मैं आपसे उनके नामांकन को मंजूरी देने का आग्रह करूंगा। वह बेहतरीन एवं दक्ष दावेदार हैं।
कैम्पबेल ने कहा, अगर मुझे अपनी जगह किसी को चुनना होता तो मैं निकोल्सन को ही चुनता। वह अफगानिस्तान में अच्छा काम करेंगे। सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के अध्यक्ष सीनेटर जॉन मैक्केन ने कहा कि वह जनरल निकोल्सन की इस बात से सहमत हैं कि 5,500 सैनिकों के साथ या तो आतंकवाद से ही निपटा जा सकता है या अफगान बलों को प्रशिक्षण और उनकी मदद की जा सकती है। दोनों जिम्मेदारियां इतने सैनिकों के साथ नहीं निभाई जा सकतीं।
उन्होंने कहा कि जब शत्रु को सुरक्षित पनाह मिली हो तो उसे हराना बहुत मुश्किल होता है। यह सबसे बड़ी चुनौती है और यही वजह है कि हमारे शत्रु, खास कर हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान में जड़े जमाए हुए हैं। निकोल्सन ने कहा कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को तब तक परास्त करना मुश्किल है जब तक उनके आतंकियों को सुरक्षित पनाह मिल रही है इसलिए पाकिस्तान का सहयोग करना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, अगर पाकिस्तान इन पनाहगाहों को नष्ट कर देता है तो दूसरा अहम कार्य अफगानों की सुरक्षा क्षमता मजबूत करना है ताकि वे हिंसा के स्तर को कम से कम कर सकें।