काबुल। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर जो पिछले काफी समय से अफगानिस्तान की राजनीति से गायब था, अब वापस लौट आया है। इंटेलीजेंस रिपोर्ट्स में कहा गया है कि नए अफगानिस्तान का नेता और देश का प्रधानमंत्री बरादर काबुल में देखा गया है। रिपोर्ट्स की मानें तो बरादर ने अपनी ड्यूटीज भी संभाल ली हैं। काबुल लौटने पर बरादर को उसके ही सुरक्षाकर्मी सुरक्षा दायरे में लिए हुए हैं। मुल्ला बरादर, तालिबान का सबसे प्रभावी नेता माना जाता है। कहा जा रहा है कि उसने गृह मंत्रालय की तरफ से सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया है। इस समय हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी देश का गृह मंत्री है। देश के गृह मंत्रालय से सुरक्षा न लेने के इस कदम को बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच लड़ाई का नतीजा माना जा रहा है। पिछले दिनों जो खबरें आई थीं उसमें कहा गया था कि हक्कानी नेटवर्क और बरादर के समर्थकों के बीच काबुल पैलेस में झगड़ा हुआ था। इसके बाद बरादर घायल हो गया था। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में तो बरादर की मौत की खबरों का दावा तक किया गया था। मगर बरादर और तालिबान की तरफ से जारी बयानों में इन खबरों से इनकार कर दिया गया था। एक ऑडियो जारी कर बरादर के अच्छे स्वास्थ्य की बात कही गई थी।
हक्कानी नेटवर्क की तरफ से इस बात पर जोर दिया गया कि बरादर को गृह मंत्रालय से सुरक्षा लेनी चाहिए लेकिन डिप्टी पीएम ने इसे मानने से साफ इनकार कर दिया। रक्षा मंत्री और तालिबान के फाउंडर मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब अभी तक कंधार में ही है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बरादर के काबुल लौटने के बाद राजधानी में फिर से टेंशन बढ़ सकती है। विशेषज्ञों की मानें तो आईएसआई समर्थित हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच आने वाले दिनों में तनाव बढ़ सकता है। मुल्ला बरादर वो चेहरा है जिसे आगे बढ़ाकर तालिबान ने दोहा में अमेरिका के साथ शांति वार्ता को आगे बढ़ाया था। 13 सितंबर को बरादर ने अपना ऑडियो जारी किया था। बरादर इस समय काबुल पैलेस में ही रह रहा है। पिछले दिनों अमेरिका की टाइम मैगजीन ने साल 2021 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में बरादर का नाम भी रखा है।लिस्ट में उसे ‘करिश्माई सैन्य नेता’ और उदारवादी चेहरे का प्रतिनिधित्व करने वाला बताया गया है। बरादर ने ही सबसे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से साल 2020 में टेलीफोन पर बात की थी। इससे पहले वो दोहा समझौता साइन कर चुका था जिसमें अमेरिकी सेनाओं के अफगानिस्तान से जाने की बात शामिल थी।