तेलअवीव। अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से तेजी से हो रही वापसी के बीच यहां अब अपने हितों के लिए चीन, पाक और तुर्की की तिकड़ी तेजी से सक्रिय हो रही है। तालिबान के तेजी से काबिज होने के बाद पाकिस्तान ने भी रंग बदलना शुरू कर दिया है। वह अमेरिका और पश्चिमी देशों का सहयोगी देश बन शांति प्रयासों का नाटक कर रहा था, अब उसका असली चेहरा सामने आ गया है। यह रिपोर्ट टाइम्स आफ इजरायल में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में पाकिस्तान को खराब आर्थिक स्थिति में अमेरिकी सुरक्षा कवच की जरूरत है, ऐसी स्थिति में भी वह चीन और तुर्की के साथ ही आगे बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट में विदेशी मामलों के जानकार फेबियन बाशर्ट ने कहा है कि पाक ने अपनी नीति में परिवर्तन इस साल जून से ही करना शुरू कर दिया था, जब उसने कहा था कि वह अमेरिका को सैन्य अड्डे के लिए अपनी भूमि नहीं देगा।
हाल में तालिबान ने चीन की उन चिंताओं को भी कम कर दिया है, जिसमें उसका मानना है कि तालिबानी शासन में अफगानिस्तान उइगरों के संगठन पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआइएम) का केंद्र बन जाएगा। यह संगठन शिनजियांग में सक्रिय है। तुर्की भी इस तिकड़ी में शामिल होकर अपना लाभ देख रहा है, उसे लगता है कि वह मुस्लिम देशों का नेतृत्व कर सकेगा। तुर्की पहले से ही अपने देश में उइगर मुस्लिमों को निशाना बनाकर चीन का प्रिय बन गया है। चीन भी अमेरिकी सेना के जाने से आई शून्यता को अपनी मौजूदगी से भरना चाहता है। इन तीनों ही देशों की अफगानिस्तान की खनिज संपदा पर भी नजर बनी हुई है। इधर जम्मू-कश्मीर के स्तंभकार फारूक गादरबली ने ट्वीट करके कहा है कि चीन पाकिस्तान और तालिबान का सहयोग करके इस क्षेत्र की शांति को पूरी तरह खत्म करना चाहता है। गादरबली पीस एंड जस्टिस फोरम के संस्थापक भी हैं।