इस्लामाबाद। पाकिस्तान की संसद ने FATF की ओर से सौंपी गई शर्तों को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध के मामलों में कानूनी मदद उपलब्ध कराने के सिलसिले में एक विधेयक पारित किया है। विपक्ष के विरोध के बीच शुक्रवार को ऊपरी सदन सीनेट ने परस्पर कानूनी सहायता (आपराधिक मामले) संशोधन विधेयक पारित कर दिया। हालांकि विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इससे सरकार को आरोपों के आधार पर पाकिस्तानी नागरिकों को अन्य देशों को सौंपने की शक्ति मिल जाएगी। विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध में वृद्धि ने दुनिया और पाकिस्तान के लिए कानूनी साधनों की प्रभावशीलता में सुधार करना जरूरी बना दिया है। देशों के बीच कमजोर समन्वय तंत्र के कारण सीमा पार अपराध के मामलों से मुकाबला करने में समस्या आती है। कानून में एकरूपता की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे कानूनी कदम उठाए जाने जरूरी थे।
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को यह कहते हुए रोकने का प्रयास किया कि इससे सरकार को आरोपों के आधार पर पाकिस्तानियों को अन्य देशों को सौंपने की ताकत मिल जाएगी। जमात-ए-इस्लामी के मुश्ताक अहमद ने विधेयक को मौलिक अधिकारों, संविधान, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और राष्ट्रीय हित के खिलाफ बताया। सीनेटर अहमद ने इसे देश के संसदीय इतिहास में काला दिन करार दिया। मुश्ताक अहमद ने कहा कि इस विधेयक के आने से सरकार किसी व्यक्ति को बिना नोटिस जारी किए ही कानून के तहत अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करके उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। हालांकि विपक्ष तीखे विरोध के बावजूद विधेयक को बहुमत से पारित कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि जून 2018 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा था।
FATF ने पाकिस्तान को अक्टूबर 2019 तक कदम उठाने के लिए एक कार्ययोजना सौंपी थी। लेकिन FATF के निर्देशों को लागू नहीं करने के कारण पाकिस्तान अभी भी उसी ग्रे लिस्ट में बना हुआ है। इससे पाकिस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। उसे आईएमएफ, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय मदद लेना मुश्किल होता जा रहा है। इससे पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान की माली हालत और खराब होती जा रही है।