बीजिंग। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इन दिनों अपनी स्थापना का शताब्दी समारोह मनाने की तैयारी में है। इस बीच पार्टी ने अपने आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब की जबरदस्त तैयारी कर रही है। हालांकि विश्लेषकों ने इस कोशिश की सफलता पर शक जताया है। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि पहले भी चीन ने ऐसी कोशिशें कीं, लेकिन वो ना तो देश के अंदर कामयाब हुईं, और ना ही विदेश में।
चीन के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर दी गई एक ताजा जानकारी के मुताबिक, चीन के राजनयिकों को कम्युनिस्ट पार्टी का विशेष अध्ययन कराया जा रहा है। साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को भी ये टास्क दिया गया है। इस पूरी मुहिम की देखरेख खुद राष्ट्रपति शी जिनपिंग कर रहे हैं। राजनयिकों और पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि वे कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल के इतिहास को समझें और उससे बुद्धि प्राप्त करें। लेकिन विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस प्रयास का असली मकसद कम्युनिस्ट सरकार की होने वाली आलोचनाओं का पूरी आक्रामकता से जवाब देने के लिए राजनयिकों और कार्यकर्ताओं को तैयार करना है।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव ची यू ने स्थानीय मीडिया से कहा है, 'पार्टी और सरकार से जुड़े लोगों को यह समझने की जरूरत है कि हम इतिहास की धारा के बीच सही दिशा में हैं। हमें अपना राजनीतिक संकल्प मजबूत करना होगा ताकि किसी चुनौती-भरी स्थिति से हम ना डरें। साथ ही सक्रिय रहते हुए हम सब कड़ी मेहनत करते रहें।' उन्होंने कहा कि राजनयिकों में जूझारू जज्बा विकसित करने की कोशिश की जा रही है।
विश्लेषकों के मुताबिक, जूझारू जज्बा का अर्थ यह है कि चीन के राजनयिक भविष्य में अधिक सख्त रुख अख्तियार करेंगे। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस शब्द का इस्तेमाल राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में चीन के लिए बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच किया था। तब पैदा हुई चुनौतियों में अमेरिका के साथ बढ़ रहा व्यापार युद्ध और हांगकांग के विरोध प्रदर्शन शामिल थे। जानकारों के मुताबिक हाल में चीनी राजनयिकों के आक्रामक नजरिए के कारण उन्हें वूल्फ वॉरियर कहा जा रहा है। वूल्फ वॉरियर शब्द चीन की लोकप्रिय फिल्म से लिया गया है, जिसमें नायक लड़ाकू मुद्रा में रहता है।
बीते मार्च में जब फ्रांस स्थित चीनी राजदूत के एक ट्विट पर विवाद हुआ और फ्रांस ने उनके व्यवहार को वूल्फ वॉरियर डिप्लोमैसी का हिस्सा बताया, तो चीनी राजदूत ने और भी आक्रामक अंदाज में बयान जारी किया था। उसमें कहा गया, 'अगर यह वूल्फ वॉरियर डिप्लोमैसी है, तो यह इसलिए ऐसी है क्योंकि यहां बहुत से सारे पागल कुत्ते मौजूद हैं।' वूल्फ वॉरियर डिप्लोमैसी के बारे में पूछे जाने पर अमेरिका में तैनात चीन के राजनयिक कुई तियानकई ने कहा था, 'कुछ लोग चाहते हैं कि चीन की कूटनीति मेमने जैसी हो। वह बाहरी हमलों को सहे और चुप रहे। लेकिन अब ऐसा होने का युग बीत चुका है।'
इंडोनेशिया में चीन के राजदूत रह चुके चेन शिचिउ ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बातचीत में कहा है कि जिस तरह की अफवाह और चीन को बदनाम करने वाली बातें अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश फैला रहे हैं, उन्हें देखते हुए हमें जवाबी संघर्ष करना होगा और 'सच' बताना होगा। उन्होंने कहा, 'हम पहले की तरह हमेशा नरम नहीं रह सकते। पश्चिमी देश लड़ते हुए हमारे घर तक पहुंच चुके हैं। ऐसे में जवाबी संघर्ष के अलावा हमारे पास और क्या विकल्प है। हम ताकत हासिल कर चुके हैं। इसलिए अब हमें बोलना होगा।'
विश्लेषकों ने इन बयानों का हवाला देते हुए कहा है कि इनसे साफ है कि वूल्फ वॉरियर डिप्लोमैसी की चीन का सोचा-विचारा तरीका है। चीन का नेतृत्व सोचता है कि अब पश्चिमी देश ढलान पर हैं, जबकि पूरब का उदय हो रहा है। यही सोच उनकी इस तरह की कूटनीति में झलकती है। लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि इस नजरिए से चीन अपने मकसद हासिल नहीं कर सकेगा। इस नजरिए में जोखिम यह है कि इससे दुनिया में उसके खिलाफ विरोध भाव और भड़क सकता है।