येरेवान। नागोरनो-काराबख के राष्ट्रपति अरायिक हारूतिउनयन ने कहा है कि अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच रविवार को हुए हिंसक संघर्ष में कई दर्जन सैनिक मारे गए हैं और घायल हुए हैं। इस हिंसा में आम नागरिकों की भी मौत हुई है।
हारूतिउनयन ने ऑनलाइन प्रेस वार्ता में कहा, ‘‘कई दर्जन सैनिक मारे गए हैं और घायल हुए हैं। इस हिंसा में कई दर्जन आम नागरिक भी घायल हुए हैं। अजरबैजान की सेना ने इस संघर्ष में तुर्की की सेना के एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया है। अजरबैजान की सेना तुर्की की सेना के आधुनिक हथियारों से लैस है।’’ अजरबैजान की सेना पर आरोप है कि उसने आम नागरिकों पर हथियारों का इस्तेमाल किया है।
इससे पहले अर्मेनिया और अजरबैजान की सेना के बीच रविवार को नागोरनो-काराबख क्षेत्र में एक इलाके पर कब्जे को लेकर हिंसक संघर्ष शुरू हो गया। अर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि नागोरनो-काराबख क्षेत्र में अजरबैजान की सेना के साथ हुए संघर्ष में उसके 16 सैनिक मारे गए हैं जबकि 100 से अधिक घायल हुए हैं।
अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशनयिन ने ट्वीट कर जानकारी दी कि अजरबैजान ने अर्तसख पर मिसाइल से हमला किया है जिससे रिहायशी इलाकों को नुकसान पहुंचा है। श्री पशनयिन के मुताबिक अर्मेनिया ने जवाबी कारवाई करते हुए अजरबैजान के दो हेलीकॉप्टर, तीन यूएवी और दो टैंकों को मार गिराया है। इसके बाद अर्मेनियाई प्रधानमंत्री ने देश में मार्शल-लॉ लागू कर दिया है।
अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ही देश पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे। लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद दोनों देश स्वतंत्र हो गए। अलग होने के बाद दोनों देशों के बीच नागोरनो-काराबख इलाके को लेकर विवाद हो गया। दोनों देश इस पर अपना अधिकार जताते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इस 4400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अजरबैजान का घोषित किया जा चुका है, लेकिन यहां अर्मेनियाई मूल के लोगों की जनसंख्या अधिक है।
इसके कारण दोनों देशों के बीच 1991 से ही संघर्ष चल रहा है। वर्ष 1994 में रूस की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संघर्ष-विराम हो चुका था, लेकिन तभी से दोनों देशों के बीच छिटपुट लड़ाई चलती आ रही है। दोनों देशों के बीच तभी से ‘लाइन ऑफ कंटेक्ट’ है। लेकिन इस वर्ष जुलाई के महीने से हालात खराब हो गए हैं। इस इलाके को अर्तसख के नाम से भी जाना जाता है।