नई दिल्ली। भारत ने नेपाल की संसद द्वारा उत्तराखंड के लिपुलेख, कालापानी एवं धारचुला को नेपाल का हिस्सा प्रदर्शित करने वाले देश के नये मानचित्र को मंजूरी दिये जाने पर आज नाखुशी जताई और कहा कि नेपाल का तथ्यहीन और अप्रमाणिक दावा टिक नहीं सकता। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यहां संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि हमने देखा है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा ने नेपाल के मानचित्र में बदलाव के लिए आज एक संविधान संशोधन विधेयक पारित किया है जिसमें भारत के हिस्से को शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि हम इस बारे में अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि नेपाल के ये कृत्रिम दावे ऐतिहासिक तथ्यों एवं प्रमाण पर आधारित नहीं है और इसलिए उसके दावे टिक नहीं सकते। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह सीमा मसले को सुलझाने के लिए बातचीत के वास्ते दोनों देशों के बीच वर्तमान में कायम समझ का भी उल्लंघन है। विवाद की शुरुआत उस समय हुई थी जब भारत ने लिपुलेख से कैलास मानसरोवर जाने वाले सड़क मार्ग का उद्घाटन किया जिसका नेपाल ने विरोध किया था।
नेपाल ने बाद में 18 मई को देश का नया मानचित्र जारी कर दिया। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भी इसको लेकर कड़ा रूख अपनाया था। नेपाल ने अपने फैसले को यह कहते हुए न्यायोचित ठहराया है कि वह गत वर्ष नवंबर से इस मुद्दे पर बातचीत की अपील करता रहा है। इस बीच, भारत ने बिना किसी ऐतिहासिक तथ्यों अथवा साक्ष्यों के आधार पर नया मानचित्र जारी करने संबंधी नेपाल के फैसले को ‘एकतरफा निर्णय’ करार दिया है।