नई दिल्ली। कोरोना वायरस का कहर थामने में जुटे दुनियाभर के वैज्ञानिकों को अब एक उम्मीद की किरण दिखी है। ये अब लगभग दुनियाभर के लोग जानते हैं कि कोरोना से गंभीर रूप से बीमार हो रहे लोगों में रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं यानी इम्यून सेल या टी-सेल की संख्या बहुत तेजी से कम हो जाती है। लेकिन उससे लड़ने के लिए किसी के पास कोई दवाई नहीं है। दूसरी तरफ कोरोना को लेकर लगभग हर दिन कोई न कोई रिसर्च किया जाता है। अब ब्रिटेन के वैज्ञानिक इसका परीक्षण कर रहे हैं कि अगर टी-सेल की संख्या बढ़ा दी जाए तो क्या लोगों की जान बचाई जा सकती है और इसमें हैरानी करने वाली बात ये है कि कई बाकी बीमारियों में यह उपाय काफी मददगार साबित हुआ है।
टी-सेल की गिरती संख्या मतलब किसी न किसी संक्रमण की आहट
कई बीमारियों में टी सेल संख्या बढ़ाने के लिए यही दवा दी गई
डॉक्टरों ने इसके लिए इंटरल्यूकिन 7 नाम की दवा का प्रयोग किया
इंटरल्यूकिन 7 काफी कारगर साबित हो रही है
खबर है कि अब किंग्स कॉलेज लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट और गाएज एंड सेंट थॉमस हॉस्पिटल के वैज्ञानिक कोरोना मरीजों पर इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल कर रहे हैं। शरीर पर वायरस का हमला होता है तो उससे लड़ने और बीमारी को शरीर से बाहर निकाल फेंकने का काम टी-सेल करती है एक स्वस्थ शख्स के एक माइक्रोलीटर रक्त में आम तौर पर 2000 से 4800 टी-सेल होती हैं इन्हें टी-लिम्फोसाइट्स भी कहा जाता है टेस्ट में पता चला है कि कोरोना के मरीजों में इनकी संख्या 200 से 1000 तक पहुंच जाती है कम होने की वजह से ही किसी शख्स की हालत गंभीर होती जाती है इस रिसर्च में डॉक्टरों ने पाया कि आईसीयू में आने वाले 70% कोरोना पीड़ितों में टी-सेल की संख्या 4000 से घटकर 400 तक आ गई। इसी के साथ दो रिसर्च से पता चला कि उन लोगों को संक्रमण नहीं हुआ, जिनमें टी-सेल की संख्या ज्यादा पाई गई। रिसर्च में लगे क्रिक इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर का कहना है कि कोरोना वायरस अलग तरह से हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र पर हमला करता है। वह सीधे टी-सेल को ही खत्म करने लगता है। हम अगर मरीजों में टी-सेल की संख्या बढ़ाने में सफल रहे तो बड़ी उपलब्धि होगी। इस रिसर्च से काफी उम्मीद भी है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी का कहना है कि यह काफी उत्साहजनक है। साथ ही देखा गया है कि कोरोना के मरीज जैसे जैसे ठीक होते जाते हैं, उनमें टी-सेल की संख्या बढ़ती जाती है। इस परिणाम से वैक्सीन बनाने में काफी मदद मिल सकती है। इतना ही नहीं इंग्लैंड की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के रिसर्च में पाया गया है कि किलर टी-सेल कैंसर के इलाज में काफी कारगर होगा। इस थेरेपी में प्रतिरोधी कोशिकाओं को निकालकर, उसमें थोड़ा बदलाव करके मरीज के खून में वापस डाल दिया जाता है, ताकि ये प्रतिरोधी कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं का खात्मा कर सकें। फिलहाल, जिस वायरस के आगे पूरी दुनिया घुटने टेक चुकी है, उसे लेकर हर दिन उम्मीदों का एक सूरज जरूर दिखता है। ये अलग मसला है कि इन सारी रिसर्चों से कितना फायदा होगा और कोरोना को हराने में कितनी मदद मिलेगी, इसके लिए रिसर्च पर नज़र बनाकर रखनी होगी और आने वाले कुछ महीनों का इंतजार करना होगा।