सहारनपुर। समाजवादी पार्टी (सपा) प्रदेश कार्यकारिणी में सहारनपुर जिले में राजपूत एवं वैश्य बिरादरी की अनदेखी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुयी है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिले को अच्छा खासा प्रतिनिधित्व देते हुए अपने पुराने तीन निष्ठावान साथियों को अवश्य जगह दी है लेकिन 72 सदस्यीय कार्यकारिणी में सवर्णों की अनदेखी का आरोप लग रहा है।
लोगों का कहना है कि अग्रवाल बिरादरी के लोग बड़ी संख्या में समाजवादी विचारधारा से जुड़े हुए हैं और राजनीतिक रूप से भी मुलायम सिंह यादव में अपनी आस्था रखते हैं। राजपूतों और वैश्यों को भाजपा का वोट बैंक मान लिए जाने के कारण ही शायद अखिलेश यादव ने प्रदेश के इन प्रमुख बिरादरियों को महत्वपूर्ण कार्यसमिति में स्थान देना उचित नहीं समझा।
डॉ. राम मनोहर लोहिया के करीबी चौधरी रामशरण दास गूर्जर के बेटे जगपाल दास को प्रदेश कार्यसमिति में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है। मुलायम सिंह के ही करीबी जाट बिरादरी के चौधरी बख्तावर सिंह को नई समिति में सचिव का पद दिया गया है। इसी के साथ सहारनपुर के ही पिछड़ा वर्ग के मांगेराम कश्यप को कार्यसमिति का सदस्य मनोनीत किया गया है।
सवर्ण जातियों की सपा की सर्वोच्च समिति में उपेक्षा पर सहारनपुर महानगर के सपा विधायक संजय गर्ग का कहना था कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें व्यापार सभा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया हुआ है। हमने प्रदेश व्यापार सभा में वैश्य बिरादरी और अन्य व्यापारी वर्ग को भरपूर प्रतिनिधित्व दिया हुआ है।
चुनावी राजनीति में एकाएक पिछड़े वर्ग का महत्व बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में 22 से 24 फीसद तक उच्च वर्ग की बिरादरियां हैं। जिनके समर्थन को नजरंदाज करना सियासी नजरिए से नुकसान दायक होगा। केंद्र में 2014 में 10 साल बाद और उत्तर प्रदेश में 2017 में 15 साल बाद सवर्ण जातियों के एकजुट समर्थन से ही भाजपा को सत्ता मिली थी लेकिन भाजपा जैसी पार्टी भी पिछड़ों और अतिपिछड़ों की लामबंदी पर ही ध्यान दे रही है। सवर्ण बिरादरियों में सरकार विरोधी रूझान को भुनाने का प्रयास सपा करती नहीं दिखी।
अनेक वरिष्ठ समाजवादियों ने यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि अखिलेश यादव ने अपनी कमेटी में जिस तरह से सवर्णों की उपेक्षा की है उसका उन्हें नुकसान हो सकता हैं। सपा ने अपने कुल 72 सदस्यों में केवल छह ब्राह्मणों को जगह दी है और महिलाएं भी केवल पांच ही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने अखिलेश की इस नइ कमेटी को असंतुलित बताते हुए कहा कि इसमें केवल पिछड़ों की ही भरमार है। सपा द्वारा सवर्णों की गई उपेक्षा भाजपा के पक्ष में जा सकती है।