नई दिल्ली। दिल्ली के मंत्रिमंडल ने आज दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन के गठन को मंजूरी दे दी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संवाददाता सम्मेलन में शिक्षा बोर्ड के गठन को कैबिनेट की मंजूरी मिलने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस बोर्ड को बनाने का मकसद है कि यहां के बच्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा की ओर बढ़ें। इस बोर्ड की मूल्यांकन प्रणाली अंतरराष्ट्रीय स्तर की होगी।
बोर्ड का गठन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से होगा और बोर्ड ऐसे आधुनिक मूल्यांकन प्रणालियों को विकसित करेगा, जिनके आधार पर कक्षा में पढ़ाई का तरीका भी बदलेगा। उन्होंने कहा कि इस बोर्ड द्वारा बच्चों में रटने की बजाय उनमें समझने और व्यक्तित्व विकास पर बल दिया जाएगा। बोर्ड बच्चों की खूबियों को परख कर बाहर निकालेगा और उसके अनुसार उनके समग्र विकास पर शिक्षा दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी हमारी शिक्षा प्रणाली में तीन घंटे की परीक्षा के द्वारा हम बच्चों के पूरे साल के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते हैं लेकिन नये बोर्ड में इस तरीके को बदलकर बच्चों का पूरे साल सतत मूल्यांकन किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि दिल्ली में 1000 सरकारी और लगभग 1700 निजी स्कूल हैं जो सीबीएसई बोर्ड से एफिलिएटेड हैं। इन सभी स्कूलों को नवगठित बोर्ड में एक साथ शामिल नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि शैक्षिक सत्र 2021-22 में अभी दिल्ली सरकार के 20-25 सरकारी स्कूलों को इस बोर्ड में शामिल किया जाएगा। इन स्कूलों का चयन स्कूल के अध्यापकों, प्रधानाचार्यों और अभिभावकों की राय लेकर किया जाएगा और उम्मीद है कि अगले 4-5 सालों में संभवत: सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूल स्वेच्छा से दिल्ली बोर्ड में शामिल होना चाहेंगे।
उन्होंने बताया कि दिल्ली बोर्ड का नियंत्रण दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता में गठित गवर्निंग बॉडी करेगी। इसमें शिक्षा अधिकारियों के अलावा उच्च शिक्षा के विशेषज्ञ, निजी और सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्य, अध्यापक, अभिभावक और शिक्षाविद् शामिल होंगे। बोर्ड की रोजमर्रा की गतिविधियों का संचालन एग्जीक्यूटिव बॉडी करेगी, जो एक प्रोफेशनल बॉडी होगी और इसके लिए एक सीईओ होंगे, जिन्हें शिक्षा, परीक्षा और स्कूल प्रशासन का लंबा अनुभव होगा। इसके साथ ही, मूल्यांकन की गहरी जानकारी, समझ और तजुर्बा रखने वाले देश और दुनिया के विशेषज्ञों को भी इस बोर्ड में शामिल किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली का शिक्षा बोर्ड दूसरे राज्यों के बोर्ड से काफी अलग होगा। इसका उद्देश्य सिर्फ यह नहीं है कि दिल्ली का एक अलग बोर्ड हो, बल्कि दिल्ली सरकार ने पिछले छह सालों के काम के बाद एक प्रोग्रेसिव शिक्षा-परीक्षा प्रणाली की जरूरत महसूस की है, इसलिए यह बोर्ड बनाया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने पिछले छह सालों में हर साल अपने बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया है। इससे दिल्ली के सरकारी स्कूलों के ढांचों को बदलकर विश्व स्तर का बनाया गया। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों, प्रधानाचार्यों को कैम्ब्रिज, हॉवर्ड, आईआईएम में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। सरकारी स्कूलों के बच्चों को विदेशों में ओलिंपियाड के लिए भेजा गया और बच्चों ने वहां भारत का नेतृत्व कर मेडल जीता।
सरकारी स्कूलों में बच्चों के बुनियादी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए चुनौती और बुनियाद जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की गई। हैप्पीनेस करिकुलम से बच्चों को खुश रहना सिखाया गया। इससे दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बोर्ड रिजल्ट 98 प्रतिशत से ज्यादा आने लगे हैं और अभिभावकों का विश्वास बढ़ा है कि सरकारी स्कूलों में उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि अब तय करने का समय है कि स्कूलों में बच्चों को क्या और कैसे पढ़ाया जाए। इसलिए दिल्ली के नए शिक्षा बोर्ड का गठन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से वह व्यक्तिगत रूप से बहुत खुश व उत्साहित हैं। दिल्ली का शिक्षा बोर्ड, शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन कर देश के विकास का काम करेगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली एजूकेशन बोर्ड तीन लक्ष्यों को पूरा करेगा। यह बच्चों में देशभक्ति की भावना विकसित करेगा, उन्हें अच्छा इंसान बनाएगा और बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएगा।