प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लगभग 14 साल जेल मे बिताने के बाद हत्या के आरोप मे आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदी को उसके साथ दो आरोपियो को भी बरी कर दिया है। तीनों जमानत पर बाहर थे और सत्र न्यायालय ने बिना ठोस सबूत के पुलिस की कहानी के आधार पर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि घटना के समय चश्मदीद गवाहो की मौजूदगी संदेहास्पद है। अभियोजन संदेह से परे आरोप साबित करने मे विफल रहा है और सत्र न्यायालय ने साक्ष्यो को समझने मे गलती की है।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति एस के पचौरी की खंडपीठ ने मुकेश तिवारी, इंद्रजीत मिश्र एवं संजीत मिश्र की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया। अभियोजन पक्ष का कहना था कि प्रताप शंकर मिश्र व उनकी पत्नी मनोरमा देवी घर में सो रहे थे जबकि दो भाई बरामदे में सोये थे। मनोरमा देवी ने कहा आरोपी हॉकी,चाकू व पिस्टल लेकर आये और हमला कर दिया। न्यायालय ने कहा मेडिकल रिपोर्ट में शरीर पर हाकी की चोट के निशान नहीं है। गोली गले में लगी है। पत्नी सहित अन्य चश्मदीद के कपड़ों पर खून नहीं है। हमलावर शोर सुन बाउण्ड्री कूद कर भाग गये।
किसी ने पकडने की कोशिश नहीं की और दीवार कूद कर भागते भी किसी ने नहीं देखा। इससे लगता है घटना के बाद चश्मदीद वहां पहुंचे। घायल को गाडी से थाना रेवती ले गये। साथ गये चश्मदीद के हस्ताक्षर सही पाए गये। फिर घायल को बलिया सदर अस्पताल ले गये जहा उसे मृत घोषित कर दिया गया। पत्नी के अलावा अन्य चश्मदीद गवाहों को न्यायालय मे पेश ही नहीं किया गया। आरोपियो से दुश्मनी के कारण चार्जशीट दाखिल की गयी।
लेकिन फायर करने के आरोपी मुकेश का कोई संबंध ही नहीं था। वह तो मृतक की दूसरे को बेची गयी जमीन खरीदार से खरीदना चाहता था। उसका कोई झगडा भी नहीं था। न्यायालय ने कहा प्राथमिकी देरी से दर्ज हुई जबकि पीडित दो बार थाने गये। अस्पताल जाते समय व अस्पताल से लौटते समय। एफआईआर दर्ज करा सकते थे। बयान विरोधाभाषी है। आरोपियो के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है। हत्या की काल्पनिक कहानी गढ़ी गयी।
न्यायालय ने कहा कि घटना की कई संभावनाये दिखायी दे रही है। हो सकता है मृतक प्रताप शंकर मिश्र बरामदे में चारपाई पर सोए हो और घायल होने पर कमरे की तरफ भागे हो और कमरे में खून गिरा हो। दोनो भाई आंगन के बरामदे मे सोये थे या सहन के बरामदे में स्पष्ट नहीं है हो सकता है पत्नी और भाई के कपड़े पर खून न होने से लगता है चश्मदीदो ने घायल को छुआ तक नहीं। विचारण न्यायालय ने इन तमाम बिन्दुओं पर विचार ही नहीं किया और सजा सुना दी। न्यायालय ने सत्र न्यायालय की सजा रद्द कर दी है और आरोपियो को बरी करने का आदेश दिया है।