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दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रखे

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 7 2020 2:37PM | Updated Date: Jun 7 2020 2:38PM
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लखनऊ। लाकडाउन के कारण करीब ढाई महीने तक बंद रहे पूजास्थलो के कपाट सोमवार को जब आम श्रद्धालुओं के लिये खुलेंगे, तो आस्था का सैलाब उमड़ने के साथ कतार में खड़े हजारों भिक्षुकों के भी किस्मत के द्वार खुलेंगे जिनकी रोटी का इंतजाम सिर्फ भक्तों की कृपा पर निर्भर रहता है।  वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण लागू देशव्यापी लाकडाउन के चलते सभी धर्मो के पूजास्थलों के कपाट बंद कर दिये गये थे।
 
लाकडाउन के पांचवे चरण यानी अनलाक 1.0 में सरकार चरणबद्ध तरीके से आम गतिविधियों को शुरू कर रही है जिसके तहत सोमवार से मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारा और गिरिजाघरों के द्वार खोले जायेंगे हालांकि सरकार की गाइडलाइन के अनुसार सभी पूजास्थलों पर सोशल  डिस्टेसिंग का पालन करना होगा और हर श्रद्धालु को मास्क और सैनीटाइजर का इंतजाम करना अनिवार्य है। पूजास्थलों में एक बार में सिर्फ पांच श्रद्धालुओं को पूजा अर्चना का मौका दिया जायेगा।
 
एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 45 लाख से अधिक भिक्षुक हर रोज सड़क चौराहों और पूजास्थलों के बाहर हाथ पसार कर जीवकोपार्जन करते हैं। लाकडाउन के बाद समाज का यह वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ हालांकि सरकार द्वारा संचालित कम्यूनिटी किचेन और समाजसेवियों के भंडारे से अधिसंख्य ने अपना और परिवार का पेट भरा लेकिन नगद कमाई के रास्ते बंद हो गये। लाकडाउन के दौरान ही चैत्र नवरात्र सन्नाटे में बीता वहीं रमजान में गुलजार रहने वाली मस्जिदों में वीरानी छायी रही।
 
गुरू तेगबहादुर जयंती में गुरूद्वारों में होने वाला लंगर प्रसाद का भी आयोजन नहीं हो सका। वहीं ईद में जकात मिलने की हजारों की उम्मीद पर भी तुषारापात हुआ। आमतौर पर धार्मिक आयोजनों पर पूजास्थलों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है जिससे इन भिक्षुकों को मोटी कमाई होती थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका। हालांकि राज्य के अलग अलग जिलों में सैकड़ों की तादाद में ऐसे भी पूजा स्थल है जहां हर रोज सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है जिसके कारण पूजा स्थलों के बाहर बैठने वाले भिक्षुक भी सुबह से अपनी पंगत जमा लेते हैं। इनमें से कई ऐसे है जिनकी जगह वर्षो से पक्की है और दूसरा भिखारी वहां बैठने की हिम्मत नहीं कर सकता है।
 
सुबह से शाम तक भरपेट खाना और हर रोज 200 से 1000 रूपये तक की कमाई वाले भिक्षुकों की भी यहां कोई कमी नहीं है। लाकडाउन के वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर और संकटमोचन मंदिर, अयोध्या में हनुमानगढ़ी ,मिर्जापुर में विंध्यवासिनी देवी,लखनऊ में हजरतगंज स्थित दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर और कानपुर में आनंदेश्वर मंदिर समेत अधिसंख्य पूजास्थल बंद होने के बावजूद रोज दर्शन पूजन करने वाले श्रद्धालु मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़ने आते रहे।
 
इसी तरह राज्य की तमाम मस्जिदों के भी रोज दर्शन करने वालों की भी तादाद कम नहीं थी। इस दौरान कई मंदिरों मस्जिदों के बाहर गिने चुने ही सही मगर भिक्षुक अपनी झोला गठरी के साथ जमे रहे जिसका उन्हे फायदा भी मिला। इन पूजास्थलों के दर्शन करने आने वाला लगभग हर श्रद्धालु अपनी जेब से कुछ न कुछ रकम निकाल कर इन भिक्षुकों की हथेली पर रखता रहा वहीं कई समाजसेवी संगठन पूजास्थलों के बाहर जमे भिक्षुकों को खाने पीने का सामान पहुंचाते रहे।
 
बची खुची कसर जिला प्रशासन द्वारा संचालित कम्यूनिटी किचेन ने पूरी कर दी। कुल मिलाकर ऊपर वाले की कृपा से लाकडाउन का समय कुछ तंगी से ही सही मगर ठीकठाक बीत गया। अब जब कल श्रद्धा के केन्द्रों के खुलने का समय है। भिक्षुकों ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। कुछ को अपनी जगह की चिंता है तो कई के मन में यह आशंका भी है कि लाकडाउन के नियमों के मुताबिक सोशल डिस्टेसिंग से कहीं उनकी जगह इतनी दूर न हो जाये कि श्रद्धालुओं की कृपा उन तक न पहुंच सके। कई भिक्षुक पूजागृहों में कम भीड़ की आशंका से भी ग्रसित हैं। कानपुर के आनंदेश्वर मंदिर के बाहर भिक्षावृत्ति करने वाले राजू ने कहा कि वह बचपन से मंदिर के बाहर बैठता है।
 
पहले माता पिता के साथ बैठता था जिनका देहांत होने के बाद मंदिर का गलियारा ही उसका आशियाना है। यहां बैठने वाले किसी भी भिक्षुक को हाथ नहीं पसारना पड़ता। श्रद्धालु खुद ही कुछ न कुछ देकर चले जाते हैं। मंदिर में लगभग हर रोज लगने वाले भंडारे के चलते खाने की कभी कोई तकलीफ नहीं हुयी। लाकडाउन के दौरान भी 15 से 20 भिक्षुक यहां हर समय जमे रहे जिनके लिये भक्त इतना कुछ खाने पीने को दे देते थे कि कभी कभार बचा हुआ भोजन उन्हे जानवरों को देना पड़ता था।
 
एक अन्य भिक्षुक रामसेवक ने कहा कि कल मंदिर के कपाट खुल रहे है जिससे पहले मंदिर प्रशासन ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर दर्शन करने के नियम कायदे बताये है। मंदिर प्रशासन ने कहा कि मंदिर के अंदर की व्यवस्था मंदिर प्रशासन की होगी जबकि बाहर की जिम्मेदारी जिला प्रशासन को लेनी होगी। जब तक कपाट बंद थे,मंदिर के बाहर से करीब 700-800 श्रद्धालु माथा टेकते थे और कल जब मंदिर खुलेगा तो श्रद्धालुओं की भीड़ को संभालना एक चुनौती होगा और जब श्रद्धालु बढ़ेंगे तो निश्चित है कि हमारी कमाई भी बढ़ेगी।
 
 
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