झांसी। उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी में शुरू हुए बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव -2020 में आये जाने माने साहित्यकार, लेखक और कवि कैलाश मढवईया ने बेहद समृद्ध्र बुंदेली भाषा और साहित्य की वर्तमान दुर्दशा के लिए एक बहुत बड़ा कारण इस क्षेत्र के राजनेताओं को बताया जो अपने गौरवशाली इतिहास को पूरी तरह से भूल चुके हैं और उनके संरक्षण के अभाव में स्थिति इतनी खराब हुई।
साठ वर्ष से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पद्मविजेता मढवईया ने यूनीवार्ता के साथ खास बातचीत में बुंदेली साहित्य और भाषा की खराब स्थिति पर अपना दर्द बयां करते हुए इस क्षेत्र के राजनेताओं को आड़े हाथ लिया और कहा ‘‘ बुंदेलखंड के राजनेता कायर हो गये है ये अपने बुंदेलखंड का गौरव भूल गये इसलिए इन्हें यह पता ही नहीं कि बुंदेली भाषा की महानता क्या है , बुंदेली संस्कृति की महानता क्या है और इनके नकारापन का कारण है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में भी बुंदेली को जगह नहीं मिल पा रही है।
जो अपनी भाषा, संस्कृति और इतिहास की महानता को ही भुला बैठे हैं वह उसको आगे लाने के लिए किसी भी प्रयास या लड़ाई में कैसे आगे आयेंगे । यह एक बहुत बड़ा कारण है कि बुंदेली भाषा को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वह हकदार थी।’’ ये लोग जानते ही नहीं कि बुंदेली कोई बोली नहीं है, यह एक भाषा है । यह भाषा साढे तीन सौ साल राजभाषा रही। महारानी लक्ष्मीबाई राजाओं के साथ जिस भाषा में पत्राचार करतीं थीं वह भाषा बुंदेली ही थी।
‘‘स्वराज’’ शब्द का सबसे पहला प्रयोग 1858 में महारानी लक्ष्मीबाई और बानपुर के राजा मर्दन सिंह के बीच बुंदेली भाषा में हुए पत्राचार में हुआ था, मैंने ही वह पत्र खोजा था। इसलिए मैं कहता हूं कि बुंदेली बहुत पुरानी और समृद्ध भाषा है लेकिन अपनो ने ही इसकी महानता को बिसरा दिया है । जिसका त्याग अपने ही कर दें तो गैर उसके हित में क्या कर सकते हैं। मढवईया ने बताया कि इस कार्यक्रम में बुंदेली साहित्य को महोत्सव के मनाया जा रहा है लेकिन अगर बुंदेली भाषा पर आधारित कार्यक्रमों की बात करें तो वह पिछले 30 वर्षों से लगातार ऐसा आयोजन भोपाल में कर रहे हैं जिसमें पूरे बुंदेलखंड से लोगों को आमंत्रित किया जाता है।
यह आयोजन 25 जून को बुंदेलखंड दिवस पर बहुत भव्यता के साथ किया जाता है। अखिल भारतीय बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद द्वारा हर साल दो सत्र सर्दियों में और गर्मियों में ओरछा में आयोजित किया जाता है जो बुंदेली भाषा और साहित्य पर आधारित होता है। झांसी में वैसे 1960 से हम आ रहे हैं । मैथलीशरण गुप्त और वृंदावन लाल वर्मा के अलावा उस दौर के कई साहित्यकारों के साथ हम काम कर चुके हैं और कई कार्यक्रमों में हिस्सा यहां ले चुके हैं लेकिन यह ‘‘ महोत्सव’’ के रूप में संभवत: यह पहला आयोजन है।
इस आयोजन के संबंध में प्रसिद्ध साहित्यकार ने कहा कि यूं तो यह कार्यक्रम महोत्सव के नाम से हो रहा है लेकिन हम चाहते हैं कि इसमें उत्सवधर्मिता कम हो और भाषा,साहित्य तथा शोध पर काम हो ताकि इसका कोई सार निकल पाये। कार्यक्रम का कोई सार निकले तब तो कुछ फायदा हो वरना यह कार्यक्रम भी यूं ही कुछ दिन छप कर खत्म हो जायेगा।
उन्होंने कलमकारों की कमियों को भी रेखांकित करते हुए कहा कि हम कलमकारों ने वह काम नहीं किया जैसा मराठी, गुजराती और बंगाली में हुआ है जबकि हमारी साहित्यिक परंपराएं किसी से कम नहीं हैं लेकिन बुंदेली भाषा पर केंद्रित काम नहीं हुआ और उसी का नतीजा है कि बुंदेली आज गांवों तक सिमट कर रह गयी लेकिन हम पिछले तीस वर्षों से बुंदली में लगातार काम कर रहे हैं । और लोग भी बुंदली साहित्य के क्षेत्र में काफी काम कर हैं गद्य के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है इसलिए बुंदेली साहित्य का भविष्य अच्छा है।