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वनों की नये मानक तय करने के मामले में हाईकोर्ट से सरकार को फिर लगा झटका

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 28 2020 7:15PM | Updated Date: Feb 28 2020 7:15PM
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नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को प्रदेश में वनों के नये मानक तय करने के मामले में सरकार को दूसरी बार झटका देते हुए मंत्रिमंडल के निर्णय पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने पर्यावरणविद् प्रोफेसर अजय रावत की ओर से दायर नयी जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए आज दूसरी बार स्थगनादेश जारी किये हैं। यह जानकारी याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव सिंह बिष्ट ने दी। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि पिछले महीने 21 नवम्बर 2019 को प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण अनुभाग की ओर से एक कार्यालय आदेश जारी कर वनों की परिभाषा बदल दी गयी थी।
 
नये आदेश के अनुसार अधिसूचित वन क्षेत्रों को छोड़कर राजस्व एवं निजी भूमि में मौजूद वनों के लिये नये मानक तय कर दिये थे। प्रदेश में राजस्व निजी भूमि में जहां दस हेक्टेअर क्षेत्रफल से कम एवं 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वन क्षेत्र हैं उनको उत्तराखंड में लागू राज्य एवं केन्द्र की वर्तमान विधियों के अनुसार वनों की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। यही नहीं नयी परिभाषा के अनुसार इनमें वनों का घनत्व अधिकतम 75 प्रतिशत रखा गया था। सरकार के इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से जनहित याचिका दायर की गयी और अदालत ने सरकार के इस आदेश पर 10 दिसंबर 2019 को रोक जारी कर दी।
 
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को आगे बताया गया कि इसके बाद सरकार ने फिर से 19 फरवरी 2020 को वनों के नये मानक तय कर दिये। सरकार ने निजी भूमि पर स्थित वनों के लिये नये मानक तय कर दिये और इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी दे दी। नये मानकों के अनुसार अधिसूचित व राजस्व भूमि पर तैनात वनों को छोड़कर पांच हेक्टेअर से कम एवं 40 प्रतिशत से कम घनत्व वाले निजी भूमि पर स्थित वनों को वन श्रेणी से बाहर कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार का यह कदम गलत है और उच्चतम न्यायालय के गोडा वर्मन बनाम केन्द्र सरकार के आदेश के खिलाफ है।
 
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वनों का परिमाण क्षेत्रफल या घनत्व नहीं हो सकता है। इससे प्रदेश में गैर वानिकी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। अधिवक्ता बिष्ट ने यह भी कहा कि सरकार का यह कदम उच्चतम न्यायालय व विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मानकों के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने भी 05 दिसंबर, 2019 को राज्य सरकार के कदम को गंभीर मानते हुए खारिज कर दिया था और सभी राज्य सरकारों को इस संबंध में एक परामर्श भी जारी किया था। अधिवक्ता ने बताया कि सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश के क्रम में सरकार ने वनों के नये मानक तय किये हैं। उन्होंने आगे बताया कि कल और आज चली मैराथन सुनवाई के बाद अंत में एकलपीठ ने मंत्रिमंडल के फैसले पर फिर से रोक लगा दी है।
 
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