टोक्यो ओलंपिक में कल की तरह आज भी भारत की झोली खाली रही. भारत को आर्चरी में काफी उम्मीद थी लेकिन वहां उसे निराशा हाथ लगी. हालांकि बावजूद इसके समझने लायक बात ये है कि ये वक्त मायूसी का नहीं बल्कि सही मौके के इंतजार का है. भारत के कई मजबूत दावेदारों का मोर्चा संभालना अभी बाकी है.
24 जुलाई को मीराबाई चानू ने इतिहास रचा. इसके बाद 25 और 26 को भारत के खाते में कोई मेडल नहीं आया. भारतीय फैंस मायूस होने लगे हैं. इंतजार बढ़ा तो चिंताएं भी. चिंता इसी बात की है कि कहीं मेडल टेली में भारत के नाम एक मैडल ही तो नहीं रह जाएगा. सौरभ चौधरी, मनु भाकर और भारतीय तीरंदाजी टीम मेडल की दावेदार थी. वो जीत नहीं पाए तो चेहरे हमारे भी बुझने लगे. लेकिन हम ये चिंता दूर कर देते हैं.
हम आपको बताते हैं कि दरअसल 25 और 26 तारीख को ज्यादातर इवेंट ऐसे थे जिसमें हमारी हिस्सेदारी भी किसी उपलब्धि से कम नहीं थी. अब आप भवानी देवी और सुतिर्था मुखर्जी की ही बात कर लीजिए. इन दोनों ने ओलंपिक में भारत की दावेदारी पेश कर भी इतिहास ही रचा.
अब भी भारत के पास मेडल के मजबूत दावेदार मौजूद हैं. इन मजबूत दावेदारों में दीपिका कुमारी, जिनकी व्यक्तिगत स्पर्धा में दावेदारी अभी बाकी है, वो वर्ल्ड नंबर वन हैं. बजरंग पूनिया, जो रेसलिंग में 65 किलोग्राम में भारत का दावा पेश करेंगे, जो वर्ल्ड नंबर वन हैं. विनेश फोगाट, जो रियो में चोटिल हो गई थीं और इस बार 53 किलोग्राम वर्ग में दोगुने जोश के साथ मैट पर उतरेंगी. अमित पंघाल, जो बॉक्सिंग में विश्व के नंबर एक बॉक्सर के तौर पर दावा पेश करेंगे.
मैरीकॉम, जो करिश्माई बॉक्सर हैं. 6 बार की वर्ल्ड चैंपियन हैं. जीत के साथ टोक्यो ओलंपिक का सफर शुरू कर चुकी हैं. पीवी सिंधु जो बैडमिंटन में रियो ओलंपिक का सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. टोक्यो में भी उन्होंने जीत के साथ सफर शुरू किया है. नीरज चोपड़ा जिनसे जेवलिन थ्रो में काफी उम्मीदें हैं. इसके अलावा मनु भाकर, सौरभ चौधरी, राही सरनोबत जैसे निशानेबाज और भारतीय हॉकी टीम को भी मेडल की उम्मीद से नकारना जल्दबाजी होगी. लिहाजा वक्त मायूसी का नहीं बल्कि मौके के इंतजार और अपने एथलीटों पर भरोसा बनाए रखने का है.