पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म का आरंभ प्रयागराज में मुंडन संस्कार से होता है। पुरखों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में पित्र धाम से धराधाम पर आए पितरों को पिंडदान दिया जाता है। पिंडदान से पहले केश दान किया जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण और मुंडन का विशेष महत्व बताया गया है।
तीर्थराज प्रयाग के गंगा और संगम तट पर केश दान और पिंडदान का महत्वपूर्ण पुण्य लाभ है। ‘‘प्रयाग मुंडे, काशी ढूंढे, गया पिंडे’ का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। वैदिक शोध एवं सांस्कृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केंद्र के पूर्व आचार्य डॉ. आत्माराम गौतम ने पुराणों और शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि श्रद्धापूर्वक श्राद्ध किए जाने से पितर वर्ष भर तृप्त रहते हैं और उनकी प्रसन्नता से वंशजों को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आचार्य गौतम ने बताया कि श्राद्ध की महिमा मार्कण्डेय पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्मपुराण, कर्मपुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण , वराह पुराण , मत्स्य पुराण आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि धर्म शास्त्रों में विस्तृत है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म सबसे आसान उपाय है।
उन्होंने बताया कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में मोक्ष के देवता भगवान विष्णु माने जाते हैं। तीर्थराज प्रयाग में भगवान विष्णु बारह अलग-अलग माधव रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती की पावन त्रिवेणी में भगवान विष्णु बाल मुकुंद स्वरुप में साक्षात वास करते हैं। यही वजह है कि प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और सबसे मुख्य द्वार माना गया है । काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। पितृ मुक्ति का प्रथम और मुख्य द्वार कहे जाने की वजह से प्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व है।
आचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में प्रयाग के गंगा और संगम तट पर किए जाने वाले मुंडन संस्कार एवं पिंडदान को महत्वपूर्ण बताया गया है। हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है, ‘किसी भी पाप और दुष्कर्म की शुरुआत केश से होती है। इसलिए कोई भी धार्मिक कृत्य करने से पहले मुंडन कराया जाता है। प्रयाग क्षेत्र में एक केश का गिरना 100 गायों के दान के बराबर पुण्यलाभ देता है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है, ‘काशी में शरीर का त्याग कुरुक्षेत्र में दान और गया में पिंडदान का महत्व प्रयाग में मुंडन संस्कार कराए बिना अधूरा रह जाता है। प्रयाग क्षेत्र में मुंडन कराने से सारे मानसिक शारीरिक और वाचिक पाप नष्ट हो जाते हैं।
प्रयागराज में मुंडन कर अपने बालों का दान करने के बाद ही तिल, जौ और आटे से बने सत्रह पिंडों को तैयार कर पूरे विधि विधान के साथ उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना कर उसे गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में विसर्जित करने और उसमें स्रान कर जल का तर्पण किये जाने की परम्परा है। ऐसी मान्यता है कि संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।