आचार्य चाणक्य को राजनीतिक, कूटनीतिक और अर्थशास्त्र का ज्ञानी माना जाता है। आज भी भारत के नींव इन्ही के विचारों पर रखी गई है। कहा जाता है कि अगर इनकी नीतियों पर कोई मनुष्य चल पड़े। तो वह अपनी जिदंगी की सारी परेशानियों से मुक्त हो जाएगा। क्योंकि आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में सफलता से लेकर असफलता के कारण बताए है। इतना ही नहीं, वह उन लोगों के बारें में भी बताकर गए है। जो सफलता के बीच की रुकावट बन सकते है लेकिन क्या आप जानते है कि आचार्य चाणक्य ने अपने श्लोक में प्रेम के रिश्ते को लेकर भी कुछ बातें बताईं हैं।
पहला श्लोक :
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥
श्लोक के अनुसार, आचार्य चाणक्य कहना चाहते है कि एक व्यक्ति अगर किसी से प्यार करता है या फिर उसके मन में किसी के लिए स्नेह है तो फिर उससे भय भी शुरू हो जाता है। जिस दिन ऐसा भय शुरू हो जाए। तो समझ लेना प्यार में परेशानियां शुरू हो गई है। इसलिए इंसान को प्रेम के बंधन को तोड़ देना चाहिए और सिर्फ जीवन बिताने पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि जहां प्यार है वहीं डर भी है। प्यार है तो उसे खोने का भय हमेशा बना रहेगा।
दूसरा श्लोक :
दह्यमानां सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते॥
दूसरे श्लोक के मुताबिक, चाणक्य ने बताया है कि दुष्ट व्यक्ति हमेशा ही दूसरे की खुशी से जलेगा। वह कभी भी किसी की कामयाबी से खुश नही हो सकता। ऐसे में वह हमेशा परेशान रहता है और कभी खुद भी सफल नहीं हो पाता। इसी वजह से वह हमेशा ही दूसरे व्यक्ति की निंदा करता है।
तीसरा श्लोक :
बन्धन्य विषयासङ्गः मुक्त्यै निर्विषयं मन।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो॥
इस श्लोक में चाणक्य ने बताया है कि कई लोग बुराई को मन में दबाकर रखते है। जिस वजह से लोगों का बुराई से बंधन हो जाता है। ऐसे लोग हमेशा बुरा करने के बारे में सोचते है। जो लोग ऐसा सोचते है या फिर करते है वह कभी भी अपनी जिंदगी मे खुश नहीं हो पाते।