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Astrology

क्यों नहीं किया भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से विवाह, ये थे 3 बड़े कारण...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 14 2020 12:42PM | Updated Date: Jun 14 2020 12:42PM
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1. शास्त्रों में इस संबंध में कई तरह की धारणाएं प्रचलित हैं। कोई कहता है कि राधा कोई और नहीं श्रीकृष्ण का ही एक रूप थी। विद्वान कहते हैं कि स्कंद पुराण में श्रीकृष्ण को 'आत्माराम' कहा गया है अर्थात जो अपनी आत्मा में ही रमण करते हुए आनंदित रहता है उसे किसी अन्य की आवश्यकता नहीं है आनंद के लिए। उनकी आत्मा तो राधा ही है। अत: राधा और कृष्ण को कभी अलग नहीं कर सकते हो फिर विवाह होना और बिछड़ने का सवाल ही नहीं उठता। श्रीकृष्ण ने ही खुद को दो रूपों में प्रकट किया है। यह भगवान का एक मनोरूप रूप है। पुराणों में उनके इस रूप को रहस्य, आध्यात्म और दर्शन से जोड़कर देखा गया।
 
2. ब्रह्मवैवर्त पुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के साथ राधा गोलोक में रहती थीं। एक बार उनकी अनुपस्थिति में श्रीकृष्ण अपनी दूसरी पत्नी विरजा के साथ घूम रहे थे। तभी राधा आ गईं, वे विरजा पर नाराज होकर वहां से चली गईं। श्रीकृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को राधा का यह व्यवहार ठीक नहीं लगा और वे राधा को भला बुरा कहने लगे। राधा ने क्रोधित होकर श्रीदामा को अगले जन्म में शंखचूड़ नामक राक्षस बनने का श्राप दे दिया। इस पर श्रीदामा ने भी उनको पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में जन्म लेकर 100 वर्ष तक कृष्ण विछोह का श्राप दे दिया। राधा को जब श्राप मिला था तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था कि तुम्हारा मनुष्य रूप में जन्म तो होगा, लेकिन तुम सदैव मेरे पास रहोगी। यही कारण था कि राधा और श्रीकृष्ण का बचपन में विछोह हो गया था।
 
3.अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार राधा श्रीकृष्ण से पांच वर्ष बड़ी थी। राधा ने श्रीकृष्ण को पहली बार जब देखा था जबकि उनकी मां यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। कुछ लोग कहते हैं कि वह पलली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था और कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी। जो भी हो लेकिन जब राधा ने कृष्ण को देखा तो वह उनके प्रेम में पागल जैसी हो गई थी और कृष्ण भी उन्हें देखकर भावरे हो गए थे। दोनों में प्रेम हो गया था।
 
राधा श्रीकृष्ण की मुरली सुनकर बावरी होकर नाचने लगती थी और वह उनसे मिलने के लिए बाहर निकल जाती थी। जब गांव में कृष्ण और राधा के प्रेम की चर्चा चल पड़ी तो राधा के समाज के लोगों ने उसका घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। उधर, एक दिन श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से कहा कि माता मैं राधा से विवाह करना चहता हूं। यह सुनकर यशोदा मैया ने कहा कि राधा तुम्हारे लिए ठीक लड़की नहीं है। पहला तो यह कि वह तुमसे पांच साल बड़ी है और दूसरा यह कि उसकी मंगनी (यशोदे के भाई रायाण) पहले से ही किसी ओर से हो चुकी है और वह कंस की सेना में है जो अभी युद्ध लड़ने गया है। जब आएगा तो राधा का उससे विवाह हो जाएगा। इसलिए उससे तुम्हारा विवाह नहीं हो सकता। हम तुम्हारे लिए दूसरी दुल्हन ढूंढेंगे। लेकिन कृष्ण जिद करने लगे। तब यशोदा ने नंद से कहा। कृष्‍ण ने नंद की बात भी नहीं मानी। तब नंदाबाब कृष्ण को गर्ग ऋषि के पास ले गए। गर्ग ऋषि ने कृष्ण को समझाया कि तुम्हारा जन्म किसी खास लक्ष्य के लिए हुआ है। इसकी भविष्यवाणी हो चुकी है कि तुम तारणहार हो। इस संसार में तुम धर्म की स्थापना करोगे। तुम्हें इस ग्वालन से विवाह नहीं करना चाहिए। तुम्हरा एक खास लक्ष्य है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मुझे नहीं बनना तारणहार मैं तो अपने गायों, ग्वालनों और इन नदी पहाड़ों के बीच ही रहकर प्रसन्न और आनंदित हूं और यदि मुझे धर्म की स्थापना करनी है तो क्या मैं इस अधर्म के साथ शुरुआत करूं की जो मुझे चाहती है और जिसे में प्रेम करता हूं उसे छोड़ दूं? यह तो न्याय नहीं है। गर्ग मुनि हर तरह से समझाते हैं लेकिन कृष्ण नहीं समझते हैं तब गर्ग मुनि उन्हें एकांत में यह रहस्य बता देते हैं कि तुम यशोदा और नंद के पुत्र नहीं देवकी और वसुदेव के पुत्र हो और तुम्हारे माता पिता को कंस ने कारागार में डाल रखा है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहे और फिर उन्होंने कहा कृपया मेरे बारे में और कुछ बताइये। तब गर्ग मुनि ने कहा कि नारद ने तुम्हें पहचान लिया है और तुमने अपने सभी गुणों को प्रकट कर दिया है। तुम्हारे जो लक्षण इस ओर संकेत करते हैं कि तुम ही वह महापुरुष हो जिसके बारे में ऋषि मुनि चर्चा करते हुए आ रहे हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण चुपचाप उठे और गोवर्धन पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर जाकर अकेले आकाश को देखने लगे। बस वे वहीं दिनभर रहे और सूर्यास्त के समय ज्ञान को उपलब्ध हो गए। वहीं से उनकी दशा और दिशा बदल गई।
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