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Astrology

महाभारत के 18 दिन के युद्ध ने द्रौपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था, जानें क्यों?

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 30 2020 8:39AM | Updated Date: May 30 2020 8:40AM
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महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। इस दौरान द्रौपदी के चेहरे का रंग श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था। उसकी आंखें मानो किसी खड्डे में धंस गई थीं, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था। द्रौपदी की उम्र अब 80 वर्ष जैसी दिखाई दे रही थी। युद्ध के पहले प्रतिशोध की ज्वाला और युद्ध के बाद पश्चाताप की ​अग्नि द्रौपदी को जला रही थी। उसके पास ना ही समझने की क्षमता बची थी, और ना ही कुछ सोचने की। कुरूक्षेत्र में हर तरफ लाशों के ढेर थे, जिनके दाह संस्कार के लिए ना साधन उपलब्ध थे और ना ही लोग। 

हस्तिनापुर में चारो तरफ विधवाओं का बाहुल्य था। पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ते थे। अनाथ बच्चे इधर-उधर घूम रहे थे। उन दिनों महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में बैठी शून्य को ताक रही थी। तभी द्रौपदी के कक्ष में भगवान श्रीकृष्ण प्रवेश करते हैं। द्रौपदी श्रीकृष्ण को देखते ही दौड़कर उनके पास जाती है और उनके कंधे पर सिर रखकर खूब रोती है। द्रौपदी श्रीकृष्ण से पूछती है भगवान ये सब क्या हो गया? ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।

श्रीकृष्ण ने कहा कि नियति बहुत क्रूर होती है द्रौपदी, वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती। वह हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है। तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुईं। तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ। युद्ध में केवल दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए अब तो तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए।

द्रौपदी ने कहा- भगवान आप मेरे घावों को सहलाने आए हैं अथवा उस पर नमक छिड़कने? कृष्ण ने कहा- नहीं, द्रौपदी मैं सिर्फ तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं। उन्होंने कहा हम सभी अपने कर्मों के परिणाम को दूर तक नहीं देख पाते हैं। द्रौपदी ने पूछा तो क्या महाभारत युद्ध के लिए केवल मैं ही उत्तरदायी हूं। कृष्ण बोले- नहीं द्रौपदी तुम खुद को इतना महत्वपूर्ण मत समझो। लेकिन तुमने अपने कर्मों में थोड़ी भी दूरदर्शिता रखतीं तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती। द्रौपदी ने कहा कि इसमें मैं क्या कर सकती थी?

कृष्ण ने उत्तर दिया- जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ, तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती तथा उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो, शायद परिणाम कुछ और होते। जब तुम पांच पतियों की पत्नी बनना स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते। इसके बाद जब तुमने इंद्रप्रस्थ के महल में दुर्योधन को अपमानित न किया होता तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता। कृष्ण ने कहा कि हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते हैं द्रौपदी, इसलिए हर शब्द बोलने से पहले हमें तोलना बहुत जरूरी होता है। इस प्रसंग से हमें यही सीख मिलती है कि शब्दों का प्रयोग सोच-समझकर ही करना चाहिए। हमें कभी भी ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की भावना को ठेस पहुंचे।

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