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Astrology

महाभारत का युद्ध समाप्त होते ही अर्जुन का रथ आखिर क्यों धूं धूं कर जला, ये थी बड़ी वजह...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 26 2020 1:25PM | Updated Date: May 26 2020 1:25PM
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महाभारत। महाभारत का युद्ध धर्म के लिए लड़ा गया जब कौरवों की महत्वाकांक्षाएं चरम पर पहुंच गई और राजा धृतराष्ट्र पुत्र मोह में इस कदर डूब गए कि उन्हें सही और गलत का ज्ञान ही नहीं रहा जबकि उनके पास विदुर जैसे विद्वान भी थे जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था और दरबार में सब सिर झुकाए बैठे शर्मसार कर देने वाली घटना के साक्षी बन रहे थे तब धृतराष्ट्र के पुत्र विकर्ण ने इसका विरोध किया. महाभारत में विदुर और विकर्ण दो ऐसे पात्र हैं जिन्होंने महाभारत के युद्ध को विनासकारी बताया था इसके बाद भी धृतराष्ट्र पुत्र मोह में फंसे रहे और महाभारत के युद्ध का कारण बनें दुर्योधन कौरवों की सेना प्रतिनिधित्व कर रहा था कौरवों की तरफ से भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी थे कौरवों को इन महारथियों का साथ मिलने से लग रहा था कि युद्ध में विजय प्राप्त करने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता है।

इतनी विशाल सेना और इतने शक्तिशाली यौद्धाओं के सामने पांडवों कहीं भी नहीं टिक पाएंगे लेकिन कौरव ये बात भूल गए कि पांडवों के पास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने और पूरे युद्ध में उनके रथ पर सवार रहे. जिस रथ पर अर्जुन सवार थे वह कोई मामूली रथ नहीं था जिस रथ पर स्वयं भगवान सवार हों वह मामूली कैसे हो सकता है। अर्जुन के रथ भगवान श्रीकृष्ण के साथ हनुमान जी और शेषनाग भी सवार थे भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध भंयकर होगा इसलिए उन्होंने आरंभ में ही अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजमान होने की प्रार्थना करो अर्जुन ने भगवान की बात मानते हुए हनुमान जी से आग्रह किया और वे तैयार हो गए इस तरह से हनुमान जी अर्जुन के रथ पर सवार हुए महाभारत के युद्ध में एक से एक भंयकर अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया गया।

इस बात को भी भगवान श्रीकृष्ण जानते थे इसलिए शेषनाग ने अर्जुन के रथ के पहियों को इस तरह से जकड़ कर रखा था कि शक्तिशाली से शक्तिशाली शस्त्र का भी कोई प्रभाव न पड़े युद्ध जब समाप्त हुआ तो अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान आप पहले उतरें इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं अर्जुन पहले आप उतरें अर्जुन को ये बात समझ नहीं आई लेकिन प्रभु के कहने पर वे पहले उतर गए इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण रथ से उतरे उनके उतरते ही हनुमान जी और शेषनाग भी अदृश्य हो गए इन सभी के उतरते ही रथ में आग लग गई और कुछ पलों में ही जलकर राख हो गया।

यह देख अर्जुन हैरान रह गए और पूछा कि प्रभु ये क्या है तब श्रीकृष्ण ने इसका राज बताया. भगवान ने कहा कि अर्जुन ये रथ तो कब का समाप्त हो चुका है भीष्म पितामह, आचार्य द्रोणाचार्य और कर्ण के प्रहारों से यह रथ समाप्त हो चुका था चूंकि इस रथ पर हनुमानजी, शेषनाग और मैं स्वयं इसका सारथी था जिसके कारण यह रथ सिर्फ संकल्प से चल रहा था इस रथ का अब कार्य पूर्ण हो चुका है इसीलिए मेरे उतरते ही यह रथ भस्म हो गया इसके बाद अर्जुन ने हाथ जोड़कर उनका आभार व्यक्त किया. का युद्ध धर्म के लिए लड़ा गया जब कौरवों की महत्वाकांक्षाएं चरम पर पहुंच गई और राजा धृतराष्ट्र पुत्र मोह में इस कदर डूब गए कि उन्हें सही और गलत का ज्ञान ही नहीं रहा जबकि उनके पास विदुर जैसे विद्वान भी थे जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था और दरबार में सब सिर झुकाए बैठे शर्मसार कर देने वाली घटना के साक्षी बन रहे थे तब धृतराष्ट्र के पुत्र विकर्ण ने इसका विरोध किया महाभारत में विदुर और विकर्ण दो ऐसे पात्र हैं

जिन्होंने महाभारत के युद्ध को विनासकारी बताया था इसके बाद भी धृतराष्ट्र पुत्र मोह में फंसे रहे और महाभारत के युद्ध का कारण बनें। दुर्योधन कौरवों की सेना प्रतिनिधित्व कर रहा था कौरवों की तरफ से भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी थे।  कौरवों को इन महारथियों का साथ मिलने से लग रहा था कि युद्ध में विजय प्राप्त करने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता है। इतनी विशाल सेना और इतने शक्तिशाली यौद्धाओं के सामने पांडवों कहीं भी नहीं टिक पाएंगे लेकिन कौरव ये बात भूल गए कि पांडवों के पास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे. महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने और पूरे युद्ध में उनके रथ पर सवार रहे जिस रथ पर अर्जुन सवार थे वह कोई मामूली रथ नहीं था जिस रथ पर स्वयं भगवान सवार हों वह मामूली कैसे हो सकता है अर्जुन के रथ भगवान श्रीकृष्ण के साथ हनुमान जी और शेषनाग भी सवार थे भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध भंयकर होगा इसलिए उन्होंने आरंभ में ही अर्जुन से कहा कि हनुमानजी से रथ के ऊपर ध्वज के साथ विराजमान होने की प्रार्थना करो अर्जुन ने भगवान की बात मानते हुए हनुमान जी से आग्रह किया और वे तैयार हो गए इस तरह से हनुमान जी अर्जुन के रथ पर सवार हुए महाभारत के युद्ध में एक से एक भंयकर अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया गया इस बात को भी भगवान श्रीकृष्ण जानते थे इसलिए शेषनाग ने अर्जुन के रथ के पहियों को इस तरह से जकड़ कर रखा था कि शक्तिशाली से शक्तिशाली शस्त्र का भी कोई प्रभाव न पड़े।

युद्ध जब समाप्त हुआ तो अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान आप पहले उतरें इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि नहीं अर्जुन पहले आप उतरें अर्जुन को ये बात समझ नहीं आई लेकिन प्रभु के कहने पर वे पहले उतर गए इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण रथ से उतरे उनके उतरते ही हनुमान जी और शेषनाग भी अदृश्य हो गए इन सभी के उतरते ही रथ में आग लग गई और कुछ पलों में ही जलकर राख हो गया।  यह देख अर्जुन हैरान रह गए और पूछा कि प्रभु ये क्या है तब श्रीकृष्ण ने इसका राज बताया भगवान ने कहा कि अर्जुन ये रथ तो कब का समाप्त हो चुका है भीष्म पितामह, आचार्य द्रोणाचार्य और कर्ण के प्रहारों से यह रथ समाप्त हो चुका था चूंकि इस रथ पर हनुमानजी, शेषनाग और मैं स्वयं इसका सारथी था जिसके कारण यह रथ सिर्फ संकल्प से चल रहा था इस रथ का अब कार्य पूर्ण हो चुका है इसीलिए मेरे उतरते ही यह रथ भस्म हो गया इसके बाद अर्जुन ने हाथ जोड़कर उनका आभार व्यक्त किया। 

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