हिन्दु धर्म में महाभारत का बहुत महत्व है, वैसे तो हम महाभारत में द्रौपदी, कुंती,माद्री, गांधारी जैसे महिला पात्रों के बारे में ही ज्यादा जानते या पढ़ते है, लेकिन आज जिस किरदार के बारे में बात करने जा रहे है जा रहे है उसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। भानुमती कम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री थी, भानुमती का रूप ऐसा था कि स्वर्ग की अप्सराएँ भी फीकी पड जाए, राजा चंद्र्वर्मा ने भानुमती के विवाह के लिए स्वयम्वर का आयोजन किया. इस स्वयम्वर में दुर्योधन, कर्ण, जरासंध, शिशुपाल जैसे पराक्रमी राजा और वीर भानुमती से विवाह की मंशा लेकर आये थे।
स्वयम्वर के समय जब भानुमती वरमाला लेकर चली, दुर्योधन को लगा कि भानुमती उसके गले में वरमाला डालेगी लेकिन वो दुर्योधन को देखकर आगे बढ़ने लगी,ये देखकर दुर्योधन क्रोधित हो गया और भानुमती को पकड कर जबरन उससे माला अपने गले में डलवा ली, बहुत से राजाओं ने इसका विरोध किया तो दुर्योधन ने उन्हें युद्ध की चुनौती दे डाली।
दुर्योधन ने सभी योद्धाओं को कर्ण से युद्ध करने की चुनौती दी, इस बात को सुनकर बहुत से राजा पीछे हट गए। लेकिन युद्ध में कर्ण की जीत हुई दुर्योधन को खलनायक के रूप में दिखाया जाता है. लेकिन दुर्योधन की सबसे बड़ी कहियत थी कि वो जिस पर भरोसा करता था उससे कभी नाराज़ नहीं होता था और उसे कभी गलत नहीं समझता था.
एक बार कर्ण और भानुमती शतरंज खेल रहे थे, दुर्योधन के आने की खबर सुन भानुमती जाने लगी, कर्ण ने उसको रोकने के लिए अपनी और खींचा तो भानुमती का आँचल फट गया और मोती बिखर गए, उसी समय दुर्योधन ने कक्ष में प्रवेश किया, दुर्योधन को देख दोनों लज्जित हो सर झुकाकर खड़े हो गए, लेकिन दुर्योधन को कर्ण पर भरोषा था इसलिए उसने कुछ नहीं बोला। इन सबके बाद भी दुर्योधन की मृत्यु के बाद भानुमती ने अर्जुन से विवाह कर लिया था।