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प्रकृति से सामंजस्य बिठाकर विकास की राह पर बढे आगे : कलराज मिश्र

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 5 2020 5:04PM | Updated Date: Jun 5 2020 5:05PM
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जयपुर। राजस्थान के राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र ने कहा है कि प्रकृति से सामंजस्य बिठाकर विकास की राह पर आगे बढने की जरुरत बताते हुए कहा है कि ऐसा नहीं होने से आज कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सामना करना पड़ रहा है। मिश्र ने शुक्रवार को विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रदेश के इंजिनियरिंग कॉलेजों के प्राचार्यों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को राजभवन से वीडियो कान्फ्रेन्स के माध्यम से सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रकृति से सामजंस्य बिठाते हुए ही विकास की राह पर हमें आगे बढना होगा।
 
यदि ऐसा नही करेंगे तो प्रकृति अपने दम पर सुधार करेगी और तब हमें प्रकृति का रौद्र रूप दिखाई देगा, जैसा इस समय वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में हो रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में चल रही वैश्विक महामारी कोविड-19 यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि हमें प्रकृति की शरण में, प्रकृति के नियमों के अनुसार ही विकास के नए मार्ग तलाशने होंगे।
 
उन्होंने कहा कि पर्यावरण को मनुष्य केवल स्वयं के अस्तित्व से जोड़कर न देखे। उन्होंने कहा कि मानवता के अस्तित्व के साथ सभी पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को भी धरती पर रहने का अधिकार है। मिश्र ने कहा कि यही सहअस्तित्व हमारे पौराणिक ग्रंथों और वैदिक संस्कृति का सार भी है। हमारे ऋषि-मुनियों ने जनमानस को सह अस्तित्व का सिद्धांत समझाने के लिए ही प्रकृति को पूजनीय बनाया।
 
अपनी जमीन से जुड़े रहकर गांव में ही सभी का विकास हो सके, ऐसा प्रयास करने की जरुरत बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि अपने गांव में अपने लोगों में बैठकर स्वयं विकास की अवधारणा जब मूर्त रूप लेने लगेगी, तो व्यक्ति प्रदूषण के बारे में जागरूक होगा तथा सतत विकास की ओर भी उन्मुख होगा।  उन्होंने कहा कि गांव के संसाधन वही के क्षेत्र के विकास में भागीदार होंगे। उन्होंने बल दिया कि तब ही किसानों एवं मजदूरों को बिना घर छोड़े रोजगार मिलेगा।
 
प्रदूषण से होने वाले दुष्प्रभावों को वह सीधा ही महसूस करेगा तथा स्थानीय स्तर पर समाधान भी खोजेगा। इससे लोकल ही वोकल बनेगा,   जिसकी पहचान वैश्विक स्तर पर भी बनेगी। मिश्र ने कहा कि कोविड-19 महामारी मे हमने देखा कि बड़ी संख्या में कामगारों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण ग्रामीण भारत में रोजगारोन्मुखी व्यवस्थाओं का अभाव है। हमारे बहुत से मजदूर और कामगार बड़े शहरों में प्रदूषण में रहने को मजबूर हो जाते हैं।
 
इस समस्या के समाधान के लिए प्रत्येक गांव को एक इकाई मानते हुए आत्मनिर्भर बनाना, विकास का संशोधित मॉडल हो सकता है। उन्होंने कहा कि आज के विश्व में बायो वेस्ट, न्यूक्लियर वेस्ट एवं ई वेस्ट का निस्तारण अलग तरह की समस्या बनती जा रही है। इसके समाधान के लिए वैज्ञानिकों को निरंतर प्रयास करना होगा। बढ़ता हुआ ध्वनि प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि वह एक अन्य खतरे की और ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे कि रासायनिक प्रदूषण। खेतों में बढ़ते रासायनिक पदार्थों के उपयोग से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के होने से अब हमें पुन: अपने मूल की ओर लौटने की आवश्यकता है।
 
इसके लिए हमें ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना तथा संसाधनों के समुचित प्रयोग से रासायनिक खेती के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करना होगा। मिश्र ने कहा कि प्लास्टिक के कारण होने वाले प्रदूषण को भी हर हाल में रोकने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि यातायात के क्षेत्र में भी नवाचार की आवश्यकता है। यातायात के क्षेत्र में नवाचार करने से तेल के आयात को कम किया जा सकता है। इससे आर्थिक लाभ तो होगा ही, वायु प्रदूषण पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। इससे हमें शुद्ध वायु मिलेगी, जो जीवनदायिनी होगी।
 
सतत विकास के लिए ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग आज की महती आवश्यकता बताते हुए कहा कि सौर ऊर्जा में भारत एवं प्रदेश के बढ़ते कदम ऊर्जा के क्षेत्र में हमें आत्मनिर्भर बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि गैर पारंपरिक स्रोतों से ऊर्जा के उपयोग से ग्रामीण क्षेत्र में ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। इसी तरह जहां भी संभव हो पवन ऊर्जा का भी उपयोग किया जाना चाहिए।
 
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