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लॉकडाउन मे बेरोजगार लोगो को मोदी सरकार की इस स्कीम का लाभ, 5 लाख रुपए से....

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 14 2020 11:12AM | Updated Date: May 14 2020 11:13AM
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नई दिल्ली। देश भर में कोरोना वायरस से बचने के लिए लॉकडाउन लगा हुआ है। इस लॉकडाउन में कई लोग बेरोजगार हो गए है और कई लोग शहर से अपने गांव में जाकर बस गए है। अब वह किसी रोजगार की तलाश कर रहे हैं। ऐसे में अब मोदी सरकार ने स्वायल हेल्थ कार्ड बनाने की योजना शुरू की है। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिल सकता है।
 
लैब बनाने के लिए 5 लाख रुपए का खर्च आता है, जिसका 75 फीसदी मतलब 3.75 लाख रुपए सरकार देती है। अभी देश में किसान परिवारों की संख्या के मुकाबले लैब बहुत कम हैं। इसलिए इसमें रोजगार का बड़ा स्कोप है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की इस स्कीम में 18 से 40 वर्ष तक की उम्र वाले ग्रामीण युवा पात्र हैं। वही आवेदन कर सकता है जो एग्री क्लिनिक, कृषि उद्यमी प्रशिक्षण के साथ द्वितीय श्रेणी से विज्ञान विषय के साथ मैट्रिक पास हो।
 
इस योजना के तहत मिट्टी की स्थिति का आकलन नियमित रूप से राज्य सरकारों द्वारा हर 2 साल में किया जाता है, ताकि खेत में पोषक तत्वों की कमी की पहचान के साथ ही उसमें सुधार किया जा सके। मिट्टी नमूना लेने, जांच करने एवं सॉइल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा 300 प्रति नमूना प्रदान किया जा रहा है। मिट्टी की जांच न होने की वजह से किसानों को यह पता नहीं होता कि कौन सी खाद कितनी मात्रा में डालनी है।
 
लैब बनाने के इच्छुक युवा, किसान या अन्य संगठन जिले के कृषि उपनिदेशक, संयुक्त निदेशक या उनके कार्यालय में प्रस्ताव दे सकते हैं। agricoop.nic.in वेबसाइट या soilhealth.dac.gov.in पर इसके लिए संपर्क कर सकते हैं। किसान कॉल सेंटर (1800-180-1551) पर भी संपर्क कर अधिक जानकारी ली जा सकती है। सरकार जो पैसे देगी उसमें से 2.5 लाख रुपये जांच मशीन, रसायन व प्रयोगशाला चलाने के लिए अन्य जरूरी चीजें खरीदने पर खर्च होगी। कंप्यूटर, प्रिंटर, स्कैनर, जीपीएस की खरीद पर एक लाख रुपये खर्च होंगे।
 
बता दें कि देश में इस समय छोटी-बड़ी 7949 लैब हैं, जो किसानों और खेती के हिसाब से नाकाफी कही जा सकती हैं। सरकार ने 10,845 प्रयोगशालाएं मंजूर की हैं। राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद कहते हैं कि देश भर में 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं। ऐसे में इतनी कम प्रयोगशालाओं से काम नहीं चलेगा। भारत में करीब 6.5 लाख गांव हैं। ऐसे में वर्तमान संख्या को देखा जाए तो 82 गांवों पर एक लैब है। इसलिए इस समय कम से कम 2 लाख प्रयोगशालाओं की जरूरत है। कम प्रयोगशाला होने की वजह है जांच ठीक तरीके से नहीं हो पाती।
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