जालंधर। प्रतिकूल मौसम के कारण आलू की फसल को हुए नुकसान के चलते राज्य में आलू के थोक भाव में भारी इजाफा हुआ है। इससे उपभोक्ताओं को जहां निराशा हुई है, वहीं आलू किसान में संतोष पाया जा रहा है। गत वर्षों के मुकाबले इस साल हुई अधिक बारिश हवा में आर्द्रता अधिक होने से आलू की फसल को झुलसा (ब्लाइट रोग) रोग होने से आलू का उत्पादन प्रभावित हुआ है। अधिकतर आलू रोशनी के सम्पर्क में आने के कारण हरा पड़ चुका है जो खाने लायक नहीं बचा है।
इसके अतिरिक्त आलू के बीज की फसल के उत्पादन में भी कमी आई है। आलू फसल को हुए नुकसान के कारण राज्य में आलू के थोक भाव में गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष लगभग दोगुना वृद्धि हुई है। पंजाब में जनवरी 2020 में आलू के थोक भाव 996 रुपए 19 पैसे रहा जो कि जनवरी 2019 में 376 रुपए 37 पैसे थे। इसी प्रकार फरवरी 2020 के भाव गत वर्ष के 391Þ 30 के मुकाबले इस वर्ष 823Þ 89 रूपये हैं जबकि जिला जालंधर में थोक भाव गत वर्ष के मुबाकले कम रहे।
पंजाब बागवानी विभाग की निदेशक शैलेंद्र कौर ने यूनीवार्ता को बताया कि पंजाब के दोआबा क्षेत्र में तैयार होने वाले आलू के बीज की गुणवत्ता के कारण यहां के आलू बीज की पूरे देश सहित श्रीलंका आदि में भारी मांग है। दोआबा में तैयार होने वाले बीज से आलू की फसल जीवाणू रहित होती है और इसका उत्पादन अन्य के मुकाबले कई गुणा अधिक मिलता है।
दोआबा क्षेत्र से आलू के बीज का निर्यात उड़ीस, गुजरात, असम, बंगाल और महाराष्ट्र तथा श्रीलंका आदि को किया जाता है। उन्होने बताया कि बागबानी विभाग, पंजाब की तरफ से ज़िला जालंधर में स्थापित सेंटर आफ एक्सीलेंस फार पोटैटो में ऐरोपोनिक और टिशू कल्चर का प्रयोग करके उत्तम क्वालिटी का वायरस / जीवाणु और बीमारी रहित बीज आलू तैयार किया जा रहा है।
श्रीमती कौर ने बताया कि यह उच्च क्वालिटी का बीज किसानों के लिए उपलब्ध है। किसान अच्छे उत्पादन के लिए उक्त सैंटर से कुफरी पुखराज, कुफरी ज्योति, कुफरी चिपसोना-1, कुफरी बादशाह, कुफरी हिमालनी, आदि आलू बीज प्राप्त कर सकते हैं। विशेषज्ञों अनुसार अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को तीसरे या चौथे साल बीज आलू बदल देना चाहिए ताकि खुले खेतों में तेले और सफेद मक्खी के हमलों के साथ फैले जीवाणुओं से छुटकारा पाया जा सके।
सेंटर आफ एक्सीलेंस फार पोटैटो के परियोजना अधिकारी डॉ दमनदीप सिंह ने बताया कि राज्य में आलू अधीन कुल रकबे में सबसे ज्यादा पैदावार कुफरी पुखराज किस्म की होती है जो लगभग 50 से 60 प्रतिशत रकबे में बोया जाता है। इसके पश्चात कुफरी ज्योति किस्म लगभग 30 फीसदी रकबा , बादशाह तथा चिपसोना तीन फीसदी, चंदरमुखी छह फीसदी तथा अन्य लगभग चार फीसदी रकबे में बोया जाता है।
उन्होंने बताया कि पंजाब को लगभग 9.70 लाख टन आलू की जरूरत होती हैं जिसमें 3.88 लाख टन बीज तथा 5.82 लाख टन खाने वाला आलू शामिल है। बाकी बचे आलू में से लगभग 15.49 लाख टन आलू दूसरे राज्यों को निर्यात किया जाता है जिसमें नौ लाख टन बीज तथा 6.49 टन खाने वाला आलू शामिल हैं। पंजाब आलू उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य है। साल 2018-19 में 102966 हेक्टेयर में लगभग 2716330 टन आलू का उत्पादन हुआ है। 2019-20 में भी इतना ही रकबा आलू अधीन होने का अनुमान है।
पंजाब में सबसे ज्यादा आलू जालंधर में बीजा जाता है जबकि सबसे कम आलू पठानकोट में 16 हेक्टेयर में बीजा जाता है। जालंधर में 22556 हेक्टेयर में आलू की फसल ली जाती है जबकि अन्य जिलों में आलू अधीन होशियारपुर में 15106 हैक्टेयर, लुधियाना में 13216, कपूरथला में 9806, अमृतसर 8016, मोगा 7506, बठिंडा 5906, फतेहगढ़ साहिब 4886, पटियाला 4706, एसबीएस नगर 2796, तरनतारन 1896, बरनाला 156, एसएएस नगर 1516, रोपड़ 1016, गुरदासपुर 816, संगरूर 896, फिरोजपुर 1286, फरीदकोट 256, मुक्तसर 260, मानसा 206, फाजिल्का 146 और पठानकोट में 16 हेक्टेयर में आलू की फसल होती है।