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सीआईए पर इमरान खान का ये बयान महज दिखावा है या वे सचमुच अमेरिका को देंगे झटका?

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 19 2021 8:20PM | Updated Date: Jun 19 2021 8:21PM
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अगले 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान की स्थिति पर अमेरिका किस तरह अपनी पकड़ बनाए रखेगा, इस वक्त यहां सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए ये सवाल बेहद अहम बना हुआ है। इस बीच अमेरिका की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दो टूक कहा है कि उनका देश अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को अफगानिस्तान में आतंकवाद-विरोधी कार्रवाइयों के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देगा। पाकिस्तान पर चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इमरान खान की इस टिप्पणी को यहां गंभीरता से लिया जा रहा है।

विश्लेषकों के मुताबिक जो बाइडन प्रशासन अफगानिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क पर अपनी नजर रखने के लिए मध्य एशियाई देशों में अपनी मौजूदगी के विकल्प भी तलाश रहा है। लेकिन इस मामले में भी उसे पेचीदगियों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि ज्यादातर मध्य एशियाई देश रूस के प्रभाव में हैं। व्लादिमीर पुतिन की सरकार अफगानिस्तान के मामले में अमेरिका से कोई सहयोग करेगी, इसकी संभावना बेहद कम है।

अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण समझी जाती है। इसकी वजह तालिबान से उसका निकट संबंध है। 9/11 (दो दशक पहले अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों) के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की जमीन से अफगानिस्तान में कई ड्रोन हमले किए थे। साथ ही वहां से उसने आतंकवाद विरोधी दूसरी कार्रवाइयों को भी अंजाम दिया था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। इसकी झलक इमरान खान की ताजा टिप्पणी से मिली है।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि अब सीआईए या अमेरिका की विशेष सैन्य इकाइयों को पाकिस्तान में अपना अड्डा बनाने की इजाजत नही दी जाएगी। उनका ये इंटरव्यू अमेरिकी टीवी चैनल एचबीओ पर रविवार रात दिखाया जाएगा। वैसे कुछ अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि इमरान की ये टिप्पणी उनकी सियासी मजबूरी भी हो सकती है। सीआईए या अमेरिकी फौज के साथ किसी तरह के सहयोग की बात करना पाकिस्तान के मौजूदा माहौल में उनके लिए राजनीतिक रूप से बेहद नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए अमेरिकी अधिकारियों को अभी भी उम्मीद है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सहयोग के लिए गोपनीय सहमति बन जाएगी। उस हाल में अमेरिका को अफगानिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियान में पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों का साथ मिल जाएगा।

इस बीच सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में अल-कायदा और आईएसआईएस के फिर से संगठित हो जाने का गंभीर खतरा है। उन्होंने आगाह किया है कि अमेरिकी फौज की वापसी के बाद अफगानिस्तान में किसी खतरे का मुकाबला करने की अमेरिका की क्षमता काफी घट जाएगी। अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने इसी हफ्ते कांग्रेस (संसद) की एक समिति के सामने कहा कि अगले दो साल में अल-कायदा और आईएसआईएस ऐसी क्षमता फिर विकसित कर सकते हैं, जिससे वे अमेरिका की जमीन पर हमला बोल सकें।

उधर अमेरिकी सेना के प्रमुख मार्क मिले ने संसदीय समिति के सामने कहा कि अगर अफगानिस्तान सरकार गिर गई और वहां गृह युद्ध शुरू हो गया, तो खतरा और बढ़ जाएगा। इसलिए पाकिस्तान का सहयोग पाना अमेरिकी रणनीति में अहम समझा जा रहा है। ये बात पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने भी कही थी। उन्होंने एक जर्मन अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि पाकिस्तान का साथ अब केंद्रीय महत्व का हो गया है। उन्होंने कहा- 'अमेरिका अब छोटी भूमिका निभाएगा। अफगानिस्तान में शांति कायम होती है या लड़ाई जारी रहती है, यह पाकिस्तान के हाथ में है।'

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