मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों में मिर्जापुर जिले में महिला प्रत्याशियों के चुनाव का अजीब नजारा है। जिले के पंचायत मतदाता 25 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों का मुंह शायद नहीं देख पायेंगे, फिर भी वे उन्हें अपना वोट देगें।
मंगलवार को पर्चा दाखिला में घुंघट में आई महिला प्रत्याशियों को देखकर लगता नहीं कि राजनैतिक रूप से जागृत समाज महिलाओं की भूमिका में आमूल परिवर्तन हुआ है। गांव प्रधान पद की उम्मीदवार के रूप में घूंघट में आई और घूंघट में पर्चा दाखिल किया और चली गई। कुछ ऐसा ही दृश्य बीडीसी और अपेक्षाकृत बडे जिला पंचायत सदस्य के कुछ महिला उम्मीदवारों में भी दिखा।
इन महिला प्रत्याशियों में पूर्व प्रधान और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों की पत्नियां शामिल हैं। इन महिलाओं के पति ही असल में चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से कई महिलाओं ने ड्योढी के बाहर कदम तक नहीं रखा है। उन्हें यह भी नहीं मालूम है कि जीतने के बाद क्या करना है। वे अपना नाम तक बताने में संकोच करती है। जिले के बारह ब्लाकों एवं जिला मुख्यालय पर पंचायत चुनावो के नामांकन को लेकर काफी गहमागहमी थी। पूरा माहौल किसी उत्सव से कम नहीं था।
कोरोना महामारी को लेकर जिलाप्रशासन द्वारा बनाई गई गाईड लाईन पूरी तरह फेल हो गयी थी। अर्ध पहाड़ी आदिवासी बहुल जिले में आज भी लोग पांच साल तक अपने प्रधान का मुंह न देखने की शिकायत कर चुके हैं। जिले के हलिया लालगंज और मडिहान में सामंतवादी चुनाव आज भी होते हैं। असल में सांसद विधायक कोटे की तरह प्रधान कोटे ने प्रधान बनने की ललक बढा दी है। प्रधानों के जीवन स्तर में आये गुणात्मक बदलाव से भी लोगों की आंखें खोल दी है।
शायद यही कारण है कि गांव के सदस्यों तक की लड़ाई हो रही है। प्रधान पद की बात ही क्या है। अब निर्विरोध चुनाव की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। आज सिटी ब्लाक में गांव प्रधान के नामांकन करने घूंघट में पहुची एक महिला ने अपना नाम तक बताने से इंकार कर दिया। नामांकन भरवा रहे उसके पति और समर्थकों ही उत्तर देने लगे। शहर के नजदीक इस गांव में दो हजार मतदाता हैं।
भले ही गाजे बाजे एवं अपने भारी समर्थको और लाव लश्कर के साथ हो रहे नामांकन से उत्साह और चेतना का भास हो रहा था। पर हकीकत में महिला प्रत्याशियों में अधिकांश अपने पति के सहारे ही लड रही है।एक तरह से उनके पति ही लड रहे हैं। उन्हें इससे कुछ लेना देना नहीं है। नामांकन के लिए सज-धज कर किन्तु घूंघट में अपने पति के साथ पहुची इन महिला उम्मीदवारों को देख कर नहीं लग रह था। संसद और विधानसभा में प्रतिनिधित्व की मांग कर महिलाओं में कोई विशेष परिवर्तन भी हुआ है।