नई दिल्ली। बुधवार को 10वें दौर की वार्ता का कोई फैसला नहीं निकल पाया है। हालांकि, आज केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों पर गतिरोध समाप्त करने के लिए इन्हें डेढ़ साल तक के लिए टालने के साथ ही किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त कमेटी गठित करने का प्रस्ताव रखा है। किसान नेताओं ने अभी इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है और कहा कि वे आपसी चर्चा के बाद सरकार के समक्ष अपनी राय रखेंगे। सरकार और लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच 10वें दौर की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने कहा कि अगली बैठक 22 जनवरी को तय की गई है। गुरुवार को किसान संगठन अपनी आंतरिक बैठक करेंगे।
किसान नेताओं ने कहा कि वे तीनों कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर कायम हैं, लेकिन इसके बावजूद वे सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और अपनी राय से अगली बैठक में वे सरकार को अवगत कराएंगे। केंद्र सरकार ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से 10वें दौर की वार्ता में तीनों कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे। किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है।
किसान नेताओं ने कहा कि 10वें दौर की वार्ता के पहले सत्र में कोई समाधान नहीं निकला क्योंकि दोनों ही पक्ष अपने रुख पर अड़े रहे। उन्होंने कहा कि आज की वार्ता में 11वें दौर की वार्ता की तारीख तय करने के अलावा कोई नतीजा नहीं निकलना है। ज्ञात हो कि कृषि कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक पहले ही रोक लगा रखी है। कोर्ट ने भी एक कमेटी गठित की है। बैठक के दौरान किसान नेताओं ने कुछ किसानों को एनआईए की ओर से जारी नोटिस का मामला भी उठाया और आरोप लगाया कि किसानों को आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रताड़ित करने के मकसद से ऐसा किया जा रहा है। सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे इस मामले को देखेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए बनाई की गई कमेटी के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी जाहिर की। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने कमेटी को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी।
उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कॉरपोरेट घरानों की कृपा पर रहना पड़ेगा। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को खारिज कर चुकी है।