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हर्ड इम्युनिटी का प्रयोग हो सकता जोखिम भरा, ये उचित नहीं: स्वास्थ्य मंत्रालय

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 31 2020 12:45AM | Updated Date: Jul 31 2020 12:45AM
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नई दिल्ली। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा है कि देश में  कोरोना वायरस से  लड़ने के लिए लोगों में प्रतिरोधक क्षमता को केवल वैक्सीन के जरिए ही विकसित  किया जा सकता है और इतनी बड़ी आबादी वाले देश में लोगों में प्राकृतिक  तरीके से प्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्युनिटी)को विकसित करने का प्रयोग काफी जोखिम भरा हो सकता है।   मंत्रालय के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी)  राजेश भूषण ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा कि भारत जैसी आबादी वाले देश  में लोगों में इस तरह के प्रयोग को करना उचित नहीं है और यह कभी भी रणनीतिक  विकल्प नहीं हो सकता है।
 
इस तरह के प्रयोग की उच्च कीमत लोगों की जान  जोखिम में डाल कर चुकानी पड़ सकती है और इससे लाखों करोड़ों लोग बीमार हो  जाएंगे।  इस प्रकार के प्रयोग में लोगों को आपस में घुलने मिलने की आजादी  दी जाती है और उन पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता ताकि लोगों  का संपर्क आपस में अधिक बढ़े और विषाणु का प्रसार अधिक से अधिक लोगों में  हो ताकि उनके भीतर इससे लड़ने की प्राकृतिक क्षमता विकसित हो सके। कोेरोना से लड़ने में केवल वैक्सीन ही कारगर उपाय है और यह निकट भविष्य में हासिल किया जा सकता है।
 
देश  में कोरोना के सामुदायिक प्रसार के बारे में उन्होंने कहा कि विश्व  स्वास्थ्य संगठन ने भी अब तक इसे परिभाषित नहीं किया है और यह हर देश की  परिस्थिति के आधार पर निर्भर करता है कि वहां कितने लोगों को कोरोना  संक्रमण हुआ है। महामारी विज्ञान की परिभाषा के अनुसार सामुदायिक संक्रमण  वह स्थिति है कि जब कोई संक्रमण इतने बड़े पैमाने पर फैल जाए कि यह पता  करना मुश्किल हो जाए कि किसने किसको संक्रमित किया है। इस स्थिति के उत्पन्न होने को सामुदायिक  प्रसार का दौर कहा जाता है।
 
उन्होंने  कहा कि देश में कुछ राज्यों के कुछ खास जिले और खास स्थान ऐसे हैं जहां  कोरोना के अधिकतर मामले देखने को मिल रहे हैं लेकिन इसे भी सामुदायिक  संक्रमण नहीं कहा जा सकता है।  देश में वर्तमान में  740 जिले हैं और इनमें  से  मात्र 50 प्रतिशत जिलों में कोरोना वायरस के 80 प्रतिशत अधिक मामले (कोविड  लोड) देखने को मिल रहा है। इसके अलावा कोरोना वायरस के 80 प्रतिशत मामलों यानी  पाजिटिव केसों में 72 घंटों में उनके संक्रमण स्रोत तथा उनकें संपर्क में  आए लोगों का पता लगा लिया जाता है।
 
देश  में कोरोना वायरस के पीक से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि इस तरह के गणितीय  मॉडल के आधार पर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है और इससे पहले मीडिया  में अनेक बार ऐसे अनेक मॉडल का हवाला देकर कहा गया था कि कोरोना पीक मई में आएगी, जुलाई में आएगी और उस दिन इतने मामले हो जाएंगे, लेकिन ये सिर्फ  गणितीय गणनाएं होती हैं। उन्होंने राजधानी दिल्ली में कराए गए सीरोलॉजिकल  सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली की 22.8 प्रतिशत आबादी को  कोरोना का संक्रमण होकर चला भी गया है जो उनकी प्रतिरोधक क्षमता को दर्शाता  है। 
 
भूषण ने बताया कि कोरोना की जांच के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट ‘‘गोल्ड  स्टैंडर्ड ’’ है और इसकी विश्वसनीयता पर किसी को कोई संदेह नहीं है लेकिन  रैपिड एंटीजन टेस्ट उन इलाकों में स्क्रींिनग में कारगर है जहां आबादी  अधिक है और घनत्व भी ज्यादा है लेकिन इसमें अगर कोई पाजिटिव आता है तो उसका  आरटीपीसीआर टेस्ट भी पाजिटिव ही आता है। 
 
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