अलवर। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर देशव्यापी लॉक डाउन की वजह से देसी फ्रिज कहलाने वाले मिट्टी के मटके (घड़ा) की बिक्री पर भी ग्रहण लग गया है, जिससे कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। गर्मी के दिनों में मटके का मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला पानी लोगों के लिए अमृत के समान होता है। वैसे आज के दौर में लोग फ्रिज का पानी ज्यादा पीते हैं लेकिन अब भी काफी लोग मटके का पानी-पीना ठीक समझते हैं।
उनका मानना है कि फ्रिज के पानी के मुकाबले मटके के पानी की तासीर ज्यादा ठंडी होती है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही श्देसी फ्रिजश् यानी मटकों की खरीददारी शुरू हो जाती है। इससे कुम्हारों और इसे बेचने वालों के परिवार का गुजर-बसर होता है लेकिन इस बार गर्मी आने के बावजूद सुराही और मटके बनाने वाले कुम्हार और विक्रेता परेशान हैं। लॉकडाउन के कारण कुम्हारों की मेहनत पर पानी फिरने लगा है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल महीने में मटके की अच्छी खासी बिक्री शुरू हो जाती थी लेकिन इस वर्ष लॉक डाउन की वजह से बिक्री काफी प्रभावित हुई है।
ऐसे में साल भर से मटके की बिक्री का इंतजार कर रहे कुम्हारों के धंधे पर कोरोना महामारी (कोविड -19) का ग्रहण ही लग गया है। मटका बनाने वाली सुशीला देवी ने बताया कि हर साल तो कई ग्राहक मटके खरीदने के लिए खड़े रहते थे, फिर चाहे वे अमीर परिवारों से हों या फिर गरीब। इस बार तो दिन भर में एकाध मटका ही बिक जाए तो बहुत बड़ी बात हो रही है। उसने बताया कि बड़े मटके की कीमत 200 रुपए है, लेकिन भूले भटके आया कोई ग्राहक लौटकर चला न जाए इसलिए मटका 120-140 रुपए तक में बेच देते हैं।
यही हाल अन्य छोटे मटकों का है, छोटे मटके 100 रुपये में बिका करते थे लेकिन इस वर्ष 50 रुपये में बेचने पड़ रहे हैं। सुशीला देवी ने बताया की यदि फिर से लॉकडाउन की तिथि आगे बढ़ा दी गई तो इस साल व्यापार होना संभव नहीं है। गर्मी के मौसम में क्षेत्र के कई कुम्हार परिवार मिट्टी के मटके, सुराही, तवा आदि बनाने का काम करते हैं। गर्मी के सीजन के पूर्व मटका और सुराही बनाकर रख लिए जाते थे, लेकिन कोरोना महामारी से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन के कारण मटका और सुराही की बिक्री पर विराम लग गया है।