नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए राज्यों से सवाल किया कि क्या विधायिका किसी विशेष जाति को आरक्षण देने के लिए उसे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित करने में सक्षम है। उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई सूची में नामित एक विशेष समुदाय को आरक्षण देने संबंधी संविधान के 102वें संशोधन की व्याख्या के सवाल पर विचार करेगा।
संविधान के 102वें संशोधन की व्याख्या का मुद्दा मराठा आरक्षण कानून की वैधता पर याचिकाओं पर गौर करते समय पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष उठा था और कानूनी मुद्दा यह है कि क्या किसी राज्य की विधायिका किसी विशेष जाति को आरक्षण देने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित करने में सक्षम है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है, उस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है। उच्चतम न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी। पीठ ने कहा कि वह 15 मार्च से सुनवाई शुरू करेगी। पीठ ने राज्यों से इस मुद्दे पर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा। उसने यह स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत महाराष्ट्र के लिए पेश होने वाले वकीलों को सुनने के बाद राज्यों को सुनेगी।